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शान्तसुधारस
अन्तःकरण जिज्ञासा से भर गया। वह अबोधमना समझ नहीं सका कि आखिर यह है क्या? इन्हें क्यों गाया जा रहा है? कुमार समाधान पाने के लिए महल से नीचे उतरा और मां से लिपटते हुए पूछा–मां! आज ये गीत किसके घर गाए जा रहे हैं, क्यों गाए जा रहे हैं? मैंने तो कभी इन्हें सुना ही नहीं। मां ने थावच्चा पुत्र को सहलाते हुए कहा-वत्स! तू अभी तक अज्ञ है, जानता नहीं; सुने भी तो कैसे सुने, यही तो तेरे अवसर आया है। देख, बेटे! आज अपने पड़ोसी के पुत्ररत्न का जन्म हुआ है। उसकी खुशी में ही सुहागिन रमणियां इन सुमधुर गीतों को गा रही हैं।
"तो फिर मां! मेरे जन्म के समय भी ऐसे गीत गाए गए होंगे?'
‘बेटे! तुम्हारी तो बात ही क्या? न जाने इन गीतों से कितने अधिक मधुर और चित्त को लुभाने वाले गीत गाए गए थे। मेरे लाडले के लिए कितने उत्सव किए गए थे और कितने व्यक्तियों को तेरी खुशी में प्रीतिभोज दिया गया था। पुत्र! सभी के जन्म के समय कुछ न कुछ ऐसा किया ही जाता है।' कुमार की अन्तर्जिज्ञासा मां के ममतामय वचनों को पाकर समाहित हो गई और पुनः वह तल्लीन बन गया मंगल गीतों की मंगल धुन में।
कुछ समय बीता। सहसा एक उल्कापात हुआ। सुकोमल कमलवन आकस्मिक तुषारापात से दग्ध हो गया। मंगलमय वातावरण में अमंगल का स्वर गूंज उठा। सहसा वह नवजात शिशु सदा-सदा के लिए कालकवलित हो गया। मां की भरी-भरी गोद पुत्र के अभाव में सूनी-सूनी-सी हो गई। भविष्य के लिए सुन्दर-सुन्दर संजोई हुई कल्पनाओं का महल एक साथ ढह गया। चारों ओर हाहाकार। कुटुम्बियों का करुण विलाप। मृदुल अन्तःकरण को संतप्त करने वाला मानसिक संताप। कुमार थावच्चा का मानस हृदयद्रावक और मर्मभेदी शब्दों से बिंधा जा रहा था। उन कर्णकटुक शब्दों से उसका मानस टूक-टूक हो रहा था। चित्त में विचित्र प्रकार की घुटन तथा उत्पीड़न का अनुभव हो रहा था। वह नहीं समझ सका इस आकस्मिक परिवर्तन के रहस्य को। समझे भी तो कैसे? आखिर था तो अबोध-अनभिज्ञ और दनिया के वातावरण से कोसों दूर। पुनः वह दौड़ादौड़ा मां के पास आया और सहमते स्वर में आश्चर्य बिखेरता हुआ बोला–मां! अभी-अभी कुछ समय पूर्व मैंने जिन गीतों को सुना था, वे कहां चले गए? असमय में ऐसे असुहावने गीत! मन करता है कि इन्हें सुनूं ही नहीं। क्या मां! इनको गाने वाला कोई दूसरा है?
पुत्र को वत्सलता से चूमते हुए मां ने कहा-वत्स! ये गीत नहीं, अपितु