________________
आत्मा की आराधना
१२१ दर्लभ और दर्शनीय थी। उनका अन्तःकरण नलिनी के पराग में लुब्ध भ्रमर की भांति रूपसुधा में प्रसक्त बना हुआ था। वे विस्फारित नेत्रों से बार-बार उस रूप-लावण्य का पान करते हुए भी असंतुष्टि और अतृप्ति का अनुभव कर रहे थे। मन कर रहा था कि घंटों तक उस सौन्दर्य को देखते ही जाएं। ___बीच में ही सम्राट ने उन्हें टोकते हुए पूछा–महानुभावो! आप यहां क्यों
और किसलिए आए हैं? इस प्रकार मौन कैसे खड़े हैं? ब्राह्मणों ने उत्तर देते हुए कहा-चक्रीश्वर! हम जिसके लिए आए हैं, वह प्रयोजन हमारा सिद्ध हो गया है। आज हम आपको देखकर कृतार्थ और पुण्यार्थ हो गए। सुना तो बहुत बार था आपकी रूप-महिमा को, किन्तु देखने का आज ही प्रसंग बना है। आपकी त्रिभुवन-मोहिनी मुद्रा को बार-बार देखती हुई भी ये आंखें प्यासी की प्यासी हैं। अन्तर्मानस में झांकता हुआ यह सौन्दर्य पुनः पुनः हमको देखने के लिए लालायित कर रहा है। अहा! कैसा विचित्र है आपका यह लावण्य और कैसी विचित्र है यह मधुरिमा! कौन रहना चाहेगा इससे वंचित और कौन गंवाना चाहेगा इसकी अलभ्यता? न जाने ऐसी सुन्दर छवि देवलोक में होगी या नहीं! काश! ऐसी रूपसुधा का देव भी पान करते। आपके गरिमामय रूप को पाकर यह वाणी मौन हो जाना चाहती है और लावण्यसुधा को पीकर ये लोचन कृतकृत्य हो जाना चाहते हैं।
सनत्कुमार मन ही मन स्वप्रशंसा के झूले में झूलते हुए फूले नहीं समा रहे थे। उनका पूरा शरीर अहंकार से रोमांचित हो उठा। एक ओर राज्यसत्ता
और प्रचुर वैभव का मद तो दसरी ओर सुरूपलावण्य का मद। उन तीनों के बीच झांकता हुआ उनका विशाल व्यक्तित्व प्रतिभासित हो रहा था। भीतर ही भीतर छिपा हुआ अहंकार का अनल प्रशंसा की आहुति पाकर भभक उठा। उन्होंने मन ही मन अहंकार से गर्वित होकर सोचा–अरे! इन्होंने अभी तक मेरे वास्तविक रूप को देखा ही कहां है? विभूषाविहीन शरीर का जब इतना मूल्यांकन है तो विभूषा से विभूषित शरीर का कितना मूल्यांकन होगा? अभी तो न मैंने स्नान ही किया है और न ही शरीर को अंगराग से मर्दित किया है। जब मैं स्नानादि से निवृत्त होकर राजसी पोशाक में चक्रवर्ती के सिंहासन पर बैलूंगा तब न जाने मेरी रूपछटा क्या कुछ होगी? सम्राट ने अपने मनोभावों को छिपाते हुए ब्राह्मणों से कहा यदि आपको देखना ही था तो अच्छा होता कि आप राजसभा में उपस्थित होते। ब्राह्मणों ने बद्धांजलि होते हुए कहा–आर्यवर! यदि आपकी अनुज्ञा हो तो हम वहां भी आ सकेंगे। स्वीकृति पाकर विप्रवर अतिथिगृह में चले गए।