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१४. संकेतिका
ईर्ष्या मनुष्य की केकड़ावृत्ति है। जिस प्रकार केकड़ा अपने साथी केकड़े को सहन नहीं कर सकता, वह उसे नीचे गिरा देता है, उसी प्रकार ईर्ष्यालु व्यक्ति गुणीजनों के गुणोत्कर्ष को देख नहीं सकता। वह उसे येन-केन प्रकारेण नीचे गिराने का प्रयत्न करता है। दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम हैं, जो दूसरों की अच्छाइयों को देखते हुए प्रमुदित होते हैं, उनके प्रति आदर का भाव प्रकट करते हैं।
मनुष्य के भीतर दो भावधाराएं अपना कार्य करती हैं। एक भावधारा है अवगुण की तो दूसरी भावधारा है गुण की । इन दोनों भावधाराओं के मध्य जीने वाला व्यक्ति अपने आपमें कभी पूर्ण नहीं होता। उसमें कुछ दुर्बलताएं होती हैं तो कुछ सबलताएं होती हैं । कुछ अक्षमताएं होती हैं तो कुछ क्षमताएं भी होती हैं। कभी छोटी-बड़ी भूलें होती हैं तो कभी महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं, छिद्रान्वेषी हमेशा दूसरों के छिद्रों को ही देखता है। वह हजार अच्छाइयां होने पर भी बुराइयों को ही खोजता है। यह है मनुष्य की मानसिकवृत्ति और मनोदशा का एक चित्रण |
ईर्ष्या उत्पन्न होने का मुख्य कारण है आत्मा की समानता में अविश्वास । जो व्यक्ति प्रत्येक आत्मा को समान मानता है, प्रत्येक आत्मा को अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द और अनन्त शक्ति से सम्पन्न देखता है, वह कभी ईर्ष्या नहीं कर सकता । प्रत्येक आत्मा को विकास करने का अधिकार है। प्रत्येक आत्मा अपने आप में स्वतन्त्र है, फिर ईर्ष्या किसलिए? दूसरों के विकास को अस्वीकार करने का अर्थ है गुणों की श्रेष्ठता को नकारना, सत्यता पर पर्दा डालना । अच्छाई में विश्वास करने वाला व्यक्ति कभी ऐसी आंखमिचौनी नहीं कर सकता। संसार में ऐसे बहुत लोग हैं जो दान, शील और तप के कारण बहुमान को प्राप्त हैं। ऐसी बहुत-सी महिलाएं हैं जो सुविवेक और सदाचरण से जन-जन को प्रेरित कर रही हैं। ऐसे