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१५. संकेतिका
जहां करुणा की वृष्टि होती है वहां फलित होता है सौहार्द, प्रेम और सुजनता। जहां उसका अकाल होता है वहां पनपती है-क्रूरता, निर्दयता, रूखापन, तिरस्कार और अवमानना। करुणा जीवन का महान् दर्शन है। जिसने इस सचाई को अपने भीतर संजोया वह दुनिया का महापुरुष कहलाया। जिसकी आंखों में करुणा का अजस्र स्रोत बहता है, जिसका अन्तःकरण सदा करुणारस से आप्लावित रहता है और जिसका सारा व्यवहार करुणामय होता है, वह व्यक्ति तदात्मकता के सूत्र को कभी विच्छिन्न नहीं कर सकता। उस तदात्मकता के दो सूत्र हैं-सहानुभूति और करुणा। जब-जब मनुष्य ने किसी कठिनाई का अनुभव किया तब-तब सहानुभूति ही एकमात्र उसका संबल बनी। रोते हए के आंसुओं को पोंछने वाला और दःखियों को सान्त्वना देने वाला कोई हो सकता है तो वह है करुणाशील व्यक्ति।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे परस्पर सहयोग की अपेक्षा होती है। आचार्य उमास्वाति ने लिखा-'परस्परोपग्रहो जीवानाम्'-जीवों का परस्पर उपग्रह–सहयोग होता है। दनिया में कोई भी बिना सहयोग के नहीं रह सकता। अर्थ और कार्य का सहयोग करने वाले बहुत मिलेंगे, किन्तु स्वार्थ के वशीभूत होकर। परन्तु निःस्वार्थभाव से सान्त्वना देकर सहयोग करने वाले बहुत कम मिलते हैं। दुःख पाने वाले प्राणियों के प्रति मन में करुणा का भाव न जागे, इससे बढ़कर आदमी में क्या क्रूरता हो सकती है? जब-जब मनुष्य के भीतर करुणा का ह्रास हुआ तब-तब मनुष्य ने न जाने कितने अमानवीय कुकृत्य किए! यह केवल नया इतिहास ही नहीं, बहुत पुराना इतिहास है। इस क्रूरता ने ही समाज को दो वर्गों में विभक्त किया, अमीर और गरीब को बांटा, पूंजीवाद और साम्यवाद को जन्म दिया। बहुत बड़ा आश्चर्य है कि व्यक्ति फिर भी अपने आपको धार्मिकता के रंग में रंगा हुआ अनुभव करता है। वह क्रूरता और धर्म को एक साथ चला रहा है। जो क्रूर या निर्दय होता है वह