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११. संकेतिका
५९ पुद्गलरूपी नट नाना रूप बनाकर नृत्य कर रहे हैं। काल, पुरुषार्थ, स्वभाव, कर्म और नियति ये सब उन्हें नचा रहे हैं। भगवान् महावीर ने कहा
'आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढे भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ।'
(आयारो, २/१२५) -'दीर्घदर्शी पुरुष लोकदर्शी होता है। वह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्ध्वभाग को जानता है और तिरछे भाग को जानता है।'
जो लोक के तीनों भागों को जानता है वह सभी प्राणियों को जानता है। जो लोक-संस्थान का अनुचिन्तन करता है वह उन सब प्राणियों में एकत्व या समत्व की अनुभूति करता है। उसे सहज उपलब्ध होता है
० सबके प्रति समानता का व्यवहार। ० विविधता में भी एकता का बोध। ० परिणमन में भी स्थिरता का बोध।