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शान्तसुधारस दर्लभतर और दर्लभतम हैं। जब इन चारों की श्रृंखला चलती है तब मनुष्य संबोधि को प्राप्त होता है। अन्यथा एक के अभाव में शेष तीन का कोई विशेष मूल्य नहीं रहता। इस दुर्लभता को जानते हुए गणधर गौतम और मेघकुमार जैसे मुनियों ने भगवान् से संबोधि प्राप्त की। जो इस सचाई को जानता है वह सदा जागरण का जीवन जीता है, संबोधि का जीवन जीता है। उसकी फलश्रुति होती है
० निरन्तर अप्रमाद और जागरूकता। ० समय का सदुपयोग। ० आनन्द की चिर अनुभूति।