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१३. संकेतिका
७३ कर देता है, जो स्वयं के लिए अनिष्टकर बन जाता है। मैत्री की भावना जागने पर अनेक समस्याएं समाहित हो जाती हैं और यह ऐसा पक्ष है जिसके समक्ष कोई शत्रु रहता ही नहीं। 'मित्ती मे सव्वभूएस' मेरी सब प्राणियों के साथ मैत्री है इस अनुप्रेक्षा से अपनी चेतना को पुष्ट करने वाला साधक मैत्री के उस छोर तक पहुंच जाता है, जहां जाने पर प्रतिफलित होता है
० प्रतिक्रिया से मुक्ति। ० अभय का विकास। • अपने द्वारा अपनी खोज।