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शान्तसुधारस
से भेद निकालने पर भेद का वह चरम बिन्दु प्राप्त होगा जहां न कोई मलिनता है और न कोई विजातीय तत्त्व। वहां कोरा चैतन्य प्रभास्वर होगा और आत्मोपलब्धि का द्वार खुल जाएगा। मनुष्य के मन में निरन्तर रहने वाला 'मैं कौन हूं' यह प्रश्न भी सदा-सदा के लिए समाहित हो जाएगा । सहसा अन्तरात्मा में एक स्वर प्रस्फुटित होगा
० मैं चिदानन्द हूं।
० मैं ज्ञान - दर्शन स्वरूप हूं।
• मैं कालातीत, शब्दातीत और तर्कातीत हूं।
० मैं अविनाशी, एकाकी और कर्ममल से रहित विशुद्ध आत्मा हूं।