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दसवां प्रकाश
धर्म भावना
१. 'दानं च शीलं च तपश्च भावो, धर्मश्चतुर्धा जिनबान्धवेन।
निरूपितो यो जगतां हिताय, स मानसे मे रमतामजस्रम्।
विश्वबन्धु तीर्थंकर ने जगकल्याण के लिए जिस चतुर्विध धर्म-दान, शील, तप और भावना का निरूपण किया, वह मेरे मानस में सतत रमता रहे। २. 'सत्यक्षमामार्दवशौचसंगत्यागार्जवब्रह्मविमुक्तियुक्तः ।
यः संयमोऽकिञ्चनतोपगूढ श्चारित्रधर्मो दशधाऽयमुक्तः॥ ___ भगवान् ने दस प्रकार के चारित्रधर्म का प्रवचन किया है-१. सत्य, २. क्षमा, ३. मार्दव कोमलता, विनम्रता, ४. शौच-मन की पवित्रता, ५. संगत्याग–व्यक्ति या वस्तु के प्रति अनासक्ति, अमूर्छाभाव, ६. आर्जव-सरलता, ७. ब्रह्मचर्य, ८. विमुक्ति-संतोष, निर्लोभता, ९. इन्द्रियसंयम और १०. अकिंचनता। ३. यस्य प्रभावादिह पुष्पवन्तौ, विश्वोपकाराय सदोदयेते। ___ग्रीष्मोष्मभीष्मामुदितस्तडित्वान्, काले समाश्वासयति क्षितिं च॥
जिस धर्म के प्रभाव से सूर्य और चन्द्रमा विश्व के उपकार के लिए सदा यहां (जगत् में) उदित होते हैं और उमड़ता हुआ मेघ ग्रीष्म ऋतु की ऊष्मा से
१. उपजाति। २. इन्द्रवज्रा। ३. श्लोकरचना की दृष्टि से युक्तशब्द संयम का विशेषण है। ४. अकिंचनता+उपगूढः आश्लिष्ट इत्यर्थः, यह भी संयम का विशेषण है। क्वचित् इत्यपि पाठ उपलभ्यते-यः संयमः किञ्च तपोवगूढः। ५. ठाणं सूत्र में धर्म के दस प्रकार इस प्रकार हैं-१. क्षान्ति, २. मुक्ति-निर्लोभता, अनासक्ति, ३. आर्जव, ४. मार्दव, ५. लाघव, ६. सत्य, ७ संयम, ८. तप, ९. त्याग-अपने सांभोगिक साधुओं को भोजन आदि का दान, १०. ब्रह्मचर्य। ६. इन्द्रवज्रा।