________________
१०. संकेतिका करता है त्यों-त्यों उसमें सरसता आती है। भगवान महावीर ने एक शब्द में उसे समता धर्म से व्याख्यायित किया। उन्होंने उसका विस्तार करते हुए दस धर्मों का प्रतिपादन किया-सत्य, क्षमा, मार्दव, शौच, संग-त्याग, आर्जव, ब्रह्मचर्य, विमुक्ति, इन्द्रिय-संयम और अकिंचनता।
ये दस धर्म जीवन-शुद्धि के दस सोपान हैं। यदि जीवन में क्षमा, आर्जव, मार्दव, सत्य और शौच का विकास होता है तो व्यावहारिक जीवन सुखमय और शान्तिमय होता है। यदि संयम, तप, त्याग और अकिंचनता का विकास होता है तो अपने द्वारा अपना अनुशासन फलित होता है। जिसने इन सोपान-मार्गों का आलम्बन लिया वह निर्मलता की उस मंजिल को प्राप्त हो गया, जहां जाने पर न कोई समस्या रहती है और न कोई मलिनता। धर्म का फलित है-पवित्रता और पवित्रता की फलश्रुति है
० समस्याओं से जूझने की शक्ति का विकास। ० जीवन का रूपान्तरण। ० व्यवहार-कुशलता।