________________ वैमानिकदेवाओंकी जघन्य-उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति ] गाथा 16 [ 73 प्रतरमें 2 सागरोपम और बारहवें 15 भाग आये, यहाँ 12 भागसे 1 सागरोपम बनता होनेसे तीसरे प्रतरमें 3 सागरोपम और 3 भाग कहे जा सकते (50 मेंसे पांच भाग कम होनेसे 45 भाग रहे,) चौथे प्रतरमें 3 सागरोपम और ई भागका उत्कृष्ट आयुष्य जानं / ( 45 मेंसे 5 जानेसे 40 रहे,) पांचवें प्रतरमें 3 सागरोपम 13 भाग अथवा 4 सागरोपम और 13 भाग प्रमाण आयुष्य जानें, (40 मेंसे 5 गये 35 भाग रहे,) छठे प्रतरमें 4 सागरोपम भागका उत्कृष्ट आयष्य जाने / (35 मेंसे 5 जानेसे 30 रहे.) सातवें प्रतरमें 4 सागरोपम और 13 भागका जानें। (30 मेंसे पांच गये 25 रहे ) आठवें प्रतरमें 8 सागरोपम और ई भागका अर्थात् पुनः पूर्वके नियम अनुसार 5 सागरोपम और 13 भाग प्रमाण आयुष्य जानें / ( 25 मेंसे 5 गये और 20 भाग बाँटनेको रहे) नौवें प्रतरमें 5 सागरोपम और 16 भागका उत्कृष्ट आयुष्य आता है। (20 मेंसे 5 कम होनेसे 15 भाग रहे) दसवें प्रतरमें 5 सागरोपम 14 भागका अथवा 6 सागरोपम और ॥सौधर्म-ईशानकल्पके प्रत्येक प्रतरमें जघन्योत्कृष्ट आयुष्यका यन्त्र / / उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति सौधर्ममें - ईशानमें | सौधर्ममें - ईशानमें सागरो० - तेरहवाँ भाग 0 - 2 - वही साधिक | 1 पल्योपम वही साधिक 0 0 0. 0 " ww ve..... 0 . / / / / / / / / / / / / . .ar or or aar ..: 0 बृ.सं. 10