________________ 214 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी - [गाथा 86-90 योजन है। चन्द्रका मण्डल 56 योजन प्रमाण विष्कम्भवाला है, जबकि सूर्यमण्डल 46 योजन प्रमाण विष्कम्भसम्पन्न है / इत्यादि तफावत स्वयं सोच लेना उचित है। // प्रथम सूर्य मण्डलोंका अधिकार // [ यद्यपि ऋद्धि आदिकी अपेक्षा देखनेसे चन्द्र विशेष महर्द्धिक है अतः सामान्य क्रमानुसार तो चन्द्र मण्डलोंका वक्तव्य प्रथम कहना चाहिए, तथापि समय-आवलिका-मुहूर्तदिवस-पक्ष-मास-अयन-संवत्सर इत्यादि कालका मान सूर्यकी गति पर अवलम्बित होनेके कारण तथा सूर्यमण्डलोंका अधिकार सविस्तर कहनेके लिए प्रथम सूर्यमण्डलोंका सुविस्तृत वर्णन किया जाता है / ] .. उसमें प्रथम उसकी गति विषयक वर्णन पांच द्वारोंसे किया जाता है / (1) चारक्षेत्र-. प्रमाणप्ररूपणा (2) अन्तरक्षेत्रप्रमाणप्ररूपणा (3) संख्याप्ररूपणा (4) अबाधाप्ररूपणा-तीन प्रकारसे (5) चारगतिप्ररूपणा-सात द्वारोंसे क्रमशः कही जाएगी। उनमेंसे चारक्षेत्र, अन्तर और संख्या ये तीन प्ररूपणाएँ तो इस ग्रन्थमें समाविष्ट हैं ही। ___1. सूर्यके मण्डलोंका चार क्षेत्र प्रमाण___ चन्द्र-सूर्यके मण्डलोंकी संख्यामें यद्यपि बहुत तफावत है, तो भी दोनोंका चारक्षेत्र तो 510 यो० 8 भागप्रमाण समान ही है / सूर्यका यह चारक्षेत्र किस तरह प्राप्त होता है यह कहा जाता है / उसमें प्रथम कुल अन्तरक्षेत्र कितना हो? यह बताया जाता है। ___ सूर्यके मण्डल 184 और उसके आंतरे 183 हैं / प्रत्येक सूर्यमण्डलका अन्तरप्रमाण दो योजनका होनेसे सम्पूर्ण अन्तरक्षेत्र [ 183 4 2 = ] 366 यो०का आया। सूर्यके मण्डल 184 होनेसे और प्रत्येक मण्डलका विस्तार एक योजनका 6 भाग प्रमाण होता होनेसे सर्व मण्डलका कुल विस्तार लानेको१८४ मण्डल. . . x48 8832 इकसठवें भाग आए। उनके योजन करनेके लिए६१) 8832 (144 ___पहले आए हुए सूर्यमण्डलके अन्तरक्षेत्रके 273 366. योजनमें आए मण्डल क्षेत्र के ... यो० 144-48 भाग जोडनेसे 0292 ... 510 यो० 48 भाग सूर्यका 244 चारक्षेत्र प्रमाण / . 244 0048 भाग