Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 743
________________ * अठारह भावराशि और भावना किस प्रकारसे व्यक्त करें ? वह * *347 . * विशेषार्थ-यहाँ पर गाथाके क्रमानुसार ही अर्थका क्रम लिखा गया है, लेकिन आत्मिक विकासकी प्रारंभिक दृष्टिसे तो अग्रबीज, काय, तिथंच तथा मनुष्य इस प्रकार मी क्रम रखा जाये तो भी गलत नहीं होगा। ये भावराशियाँ क्यों बनायी होगी? तो अध्यात्म भावना व्यक्त करनेके लिए ही बनायी होगी ऐसा लगता है। भावना किस प्रकारसे व्यक्त करें ? / . तो सुबहमें उठकर, स्वस्थ बनकर यह चिंतन करे कि मैं कौन हूँ ? इसका उत्तर है-मैं आत्मा हूँ / कहाँसे आयी हूँ ! तो मैं अपने आप यों ही पैदा नहीं हुआ अथवा अपने आप आकाशमेंसे पैदा नहीं हुआ हूँ, लेकिन अन्य किसी जन्ममेंसे में आया हूँ। और जब तक मुक्त दशा-मोक्ष नहीं मिलेगा, तब तक मरकर अन्यान्य जन्मोंमें चौरासीके चक्करमें घूमता ही रहूँगा, इत्यादि / .. ___सबसे . पहले 18 भावराशियोंमें उपर्युक्त तीनों प्रश्नोंको सोच लेना है। जैसे कि, मेरी आत्मा अनादिकालसे कहाँ थी ? तो आत्माके जीवनका मूलस्थान निगोद (साधारण वनस्पतिकाय ) जो अत्यन्त अविकसित दशायुक्त है वहाँ थी और वहाँ अव्यक्तरूपसे महाकष्टोंको भुगतकर तथा भव्यताके योगसे बादर निगोदमें आयी और वहाँसे प्रत्येक वनस्पतिमें आती हुई अग्रवीज चतुष्कमें उत्पन्न हुई। वहाँ सृष्टिकी सभी वनस्पतियों के रूपमें जनम धारण किया और इस प्रकार करते-करते अकाम निर्जराके योगसे कायचतुष्क पृथ्वी, जल, तेउ, तथा वायुकायके भवोंमें परिभ्रमण किया / फिर वहाँसे भी ऊपर उठनेके योग प्राप्त होते ही क्रमशः तिर्यच चतुष्क अर्थात् दोइन्द्रिय, तीइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, संज्ञी-असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय अर्थात् पशु-पक्षी आदिके भवोंको धारण किया, तदनन्तर मनुष्य चतुष्कमें अर्थात् अकर्मभूमि, कर्मभूमि तथा 56 अंतीपमें मनुष्यरूप जन्म धारण किए। इतना सोचनेके बाद वह स्वयं मूल बात पर आ जाये कि, हालमें मैं संज्ञीपंचेन्द्रिय मनुष्यके रूपमें इस भवमें हूँ। वर्तमानमें मुझमें बुद्धि, शक्ति, विवेक, समझ ये सब यथायोग्य है, तो फिर अब मेरा कौन-कौनसा फर्ज रहता है ? इत्यादि सोचें / इतना ऊपर उठनेके बाद अब मुझे किस प्रकारका जीवन जीना चाहिए, उसे सोचना चाहिए। श्री तीर्थकर देवोंने जिस प्रकारका जीवन जीनेको कहा है उसी प्रकारका त्याग और वैराग्ययुक्त जीवन अगर नहीं जीऊँगा तो मेरा क्या होगा ? इतना ऊपर उठने के

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