Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 744
________________ * 348 . . श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . बाद तथा इतनी विकासशील दशा प्राप्त होनेके बाद फिरसे पुनः तु जो नीचे पटक जायेगा, तो पुनः एकदमः अविकसित दशायुक्त भवमें फिरसे चला जायेगा। इसलिए चेतन ! आरंभ, समारंभ, पापकी प्रवृत्तियाँ छोड़ दे। निर्मल तथा पवित्र जीवन जीना सीख लें ! सर्वथा चारित्रकी प्राप्ति न कर सके तो देशविरति चारित्रका स्वीकार कर लें; और इतना एक नियम बना ले कि कमसे कम हिंसासे अगर जीवन निर्वाह हो सके तो अधिक हिंसा नहीं करेगा तथा कमसे कम जरूरतसे चल सके तो अधिक जरूरत कमी भी न रखें / ये दो सामान्य नियम भी होंगे तो भी जीवन बहुत उन्नत, सुखशान्तियुक्त तथा धर्ममय बन जायेगा ! जीवनमें अहिंसा, संयम तथा तपका प्रकाश फैल जायेगा / इसके फलस्वरूप उत्तरोत्तर अनेक मानसिक, वाचिक, कायिक दुःखों तथा क्लेशोंका अंत हो जायेगा और जीवन धन्य बन जायेगा। जीवन मुक्त दशाके पथ पर तु आगे बढता ही जायेगा और परंपरासे अनंत सुखका स्थान स्वरूप मुक्तिसुखका अधिकारी बन जायेगा / [346] ( प्र. गा. सं. 73 ) ___ अवतरण-अब यहाँ अप्रस्तुत गाथा दी जाती है जो कितनी आवलिकाओंसे एक मुहूर्तकालमान बनता है ? यह बात बताती है / एगाकोडी सतसट्ठी-लक्खा सत्तहत्तरी सहस्सा य। दोय सया सोलहिआ, आवलिया इगमुहुत्तम्मि // 347 // (प्र. गा. सं. 74) गाथार्थ-एक करोड़, सडसठ लाख, सतहत्तर हजार, दो सौ सोलह [1, 67, 77, 216 ] आवलिकाओंका एक मुहूर्त बनता है अर्थात् उतनी आवलिकाओंसे एक मुहूर्त कालमान होता है। // 347 // विशेषार्थ-अन्य भारतीय संस्कृतियोंमें कालमान वाचक मुहूर्त, घड़ी ( घटी), पल, विसल आदि अनेक शब्द हैं / पाश्चात्य देशोंमें घण्टा, मिनट, सेकण्ड आदि शब्द हैं। यद्यपि भारतीय जैन संस्कृति यह सर्वज्ञमूलक है, इसलिए इसमें उनसे भी अधिक सूक्ष्मतर कालमान वाचक अनेक शब्द हैं। इसी जैन संस्कृतिमें सूक्ष्मतम मानके लिए समय शब्दका प्रयोग किया जाता है। इस समय शब्दके बाद तुरंत ही आवलिका नामसे पहचाने जाते कालमान है, तदनन्तर मुहूर्त मान आता है। इस मानकी सूची (तालिका ) इसी ग्रन्थके पृष्ठ 28 से 31 तक दी गयी है /

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