Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 746
________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * यद्यपि विज्ञान ज्यों ज्यों आगे बढ़ता जायेगा त्यों त्यों नये नये चमत्कारिक आविष्कार देखनेको जरूर मिलेंगे और तब काल तथा नापकी सूक्ष्म गिनती तथा कुछेक सर्वज्ञकथित सिद्धान्तोंकी त्रैकालिक सत्यता सामने आती जायेगी। अभी-अभी ही 'अमेरिकन रीपोर्ट ' में यह प्रकट हुआ है कि " अमेरिकामें एक ऐसी अणुघड़ी तैयार हुई है जो एक ही सेकण्डमें 24 अरबों बार 'टिक-टिक' अवाज करेगी। इसके अतिरिक्त एक मिनटमें छः करोड़ तस्वीर खींच सके वैसा एक कॅमेराका भी संशोधन हुआ है," आदि / यद्यपि यह बात शास्त्रके किसी पन्ने पर लिखी हुई मिलती तो आजका मनुष्य उसे गलत या असंभव कहकर मजाकमें उड़ा देता, लेकिन यह बात वैज्ञानिकोंने कही है. इसलिए निःशंक होकर तथा बिना कोई तर्क उठाये माननेको तैयार हो जायेगा। हमारे शास्त्रोंमें यह बात मिलती है कि एक निमेष मात्र ( आँखका एक ही पलकभरमें ) असंख्य समय गुजर जाते हैं। कुछ समयके बाद आजका विज्ञान इसी बातका समर्थन करता हुआ कोई एलान जरूर करेगा ही। हे प्रिय वाचकगण। यदि जड़विज्ञान सेकण्डके अरबोंवें भागका संशोधन कर सकता है तथा पदार्थके एक इंचके दस करोडवें अथवा उनसे भी अधिक भागोंका नाप वता सकता है, तो फिर आत्माका यह चैतन्यविज्ञान पदार्थके सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणुको तथा कालके समयको बता सके इसमें कौनसा आश्चर्य रहता है ? [347] (प्र. गा. सं. 74) अवतरण-अब पूर्वोक्त आवलिकाओंके कालमें अथवा एक मुहूर्तकालमें जीव अधिकसे अधिक कितने भव कर सकता है ! उसे बताते हैं / पणसहि सहस पणसय, छत्तीसा इगमुहुत्त खुडुभवा / दोय सया छप्पन्ना, आवलिआ एगखुडभवा // 348 // (प्र. गा. सं. 75) गाथार्थ-एक मुहूर्त अथवा 1,67,77,216 आवलिका जितने समयमें जीव (निगोदावस्थामें) 65536 क्षुद्र-अल्पातिअल्प भव करते हैं। इस प्रकार एक क्षुल्लक भव 256 आवलिका प्रमाण हुआ। // 348 // विशेषार्थ-चार गति और उनकी 84 लाख जीवायोनिमें ज्यों सागरपम जितने बड़े बृहद्काल प्रमाणके भव है, त्यों साल, दिवस, मुहूर्त अथवा घड़ी इत्यादि मानवाले

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