________________ 257. * दश संशामोंका वर्णन . 8. लोमसंज्ञा - पदार्थों परकी अत्यन्त आसक्ति और उसके प्रतापसे पदार्थादि संचयका शौक बढ़ता जाए। यह लोभ मोहनीयकर्मके उदयके कारण होता है। 9. ओघसंज्ञा - इस संज्ञाके दो अर्थ अलग अलग ग्रन्थकार करते है। वह इस तरह 1. मतिज्ञानावरण कर्मके स्वल्पक्षयोपशमसे शब्द और अर्थ विषयक सामान्य बोध हो वह / और इस अर्थसे यह संज्ञा दर्शनोपयोग रूप हुई / 2. अथवा "अव्यक्त उपयोग स्वरूप वह / जिसे सहजभाविनी भी कह सकते / और इस संज्ञाके कारण ही लताएँ स्वयं अपना आश्रय ढूंढकर दीवार पर या वृक्ष पर स्वतः चढती हैं। इत्यादि जो कार्य अमनस्कोंके होते हैं वे ओघसंज्ञाके ही सूचक हैं। 10. लोकसंज्ञा- इस संज्ञाके भी ग्रंथकार दो अर्थ करते हैं / 1. *मतिज्ञानावरणीय कर्मके स्वल्पक्षयोपशमसे शब्दार्थ विषयक जो बोध हो वह / और इस अर्थसे यह संज्ञा 'ज्ञानोपयोग' रूप है। 2. दूसरा अर्थ यह है कि * जनताने अपनी अपनी कल्पनाओंसे निश्चित किये निर्णयोंका आदर करना वह। जैसे कि " अपुत्रकी सदगति नहीं होती। ब्राह्मणपुत्र देवतुल्य हैं। कुत्तेके या यमराज है। कुत्ते यमराजको देखते हैं। मयूरोको स्वपंखोंके वायुसे गर्भ रहता है / कर्णका जन्म कानमेंसे हुआ था / अगस्त्य ऋषि समग्र समुद्रपान कर गए।" ऐसी ऐसी अनेक मान्यताओं-संज्ञाओंको ज्ञानावरणीयके क्षयोपशम और मोहनीयके उदयवाले लोग खड़ी करते हैं और प्रचार करते हैं। * यह प्रवचनसारोद्धार टीकाका अभिप्राय है / 552. यह आचारांग नि० गा० 33 की वृत्तिके अभिप्रायसे / 553. वैदिकादि इतर ग्रन्थोंमें एक सुप्रसिद्ध वचन है कि 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति मोक्षो नैव च नैव च' (म० स्मृ०). अर्थात् अपुत्रकी गति नहीं होती और मोक्ष तो नहीं ही नहीं है। अर्थात् उसका स्वर्ग-मोक्ष नहीं होता / 554. 'ब्राह्मणाः भूदेवाः' ब्राह्मण पृथ्वी परके देव हैं / 555. यमराजा कुत्तका रूप लेकर आते हैं और जीवको परलोकमें ले जाते हैं / 556. अथवा दूसरी एक सुप्रसिद्धि है कि मृत्यु क्षण पर मृतकको लेने यमराज आते हैं। उन्हें कुत्ते देख सकते हैं। इसीलिए कुत्ते रोते हैं और इसी लिए लोग भी रोते कुत्तोंको अमंगल मानकर भगाते हैं। 557. दूसरा मानना यह भी है कि मयूरका अश्रु बिंदु मयुरी चाखे तो भी उसे गर्भ रहता है। घृ. सं. 33