________________ * चौबीश बारोंके विस्तृत वर्णन * 277. चीजें औदारिक जीवोंके सप्राण-निष्प्राण कलेवरों (शरीरों) से ही बनी हुई है। ये समी चीजें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पतिसे ही होती है। कुछ द्रव्य सजीव होते हैं और उपयोगी बनते हैं तो कुछ जीव निर्जीव होनेके बाद उपयोगमें लिए जाते हैं। जैसे कि रहनेके मुकाम, खाने-पीने-पहनने-ओढ़नेकी चीजें, तमाम प्रकारके वाहन, शस्त्र, धातु, रत्न या पत्थर, लक्कड ये सभी औदारिक हैं / एक प्रकारसे देखा जाये तो सारा विश्व जंतुमय है। और ‘जीवो जीवस्य जीवनम् ' (अथवा 'भक्षणम्') जीवका, जीवन जीव ही है, इसी न्यायसे सब चल रहा है। यहाँ पर साथ-ही साथ यह बताना जरूरी है कि एक जीवमें एक साथ कितने शरीर हो सकते हैं ? . जीव ( मृत्यु पाकर) एक भवके शरीरका त्याग करके दूसरे भवका शरीर धारण करने जाता है तव, प्रयाण और प्राप्तिके बीच अत्यल्प (बहुत ही कम) समयमें सिर्फ (बिना इन्द्रियादि अंगोपांग) तैजस, कार्मण ये दोनों शरीर होते हैं। इसी शरीरके साथ ही जीवका जन्म-मरण होता है। इसलिए उत्पन्न होनेके बाद तथा शरीरपर्याप्ति पूर्ण होनेके बाद स्वभव प्रायोग्य (औदारिक या वैक्रिय) शरीर रचना जब हो गयी हो तव मरण पर्यन्त तीन शरीरवाला अवश्य होता है। मनुष्यों और तियेचोंमें अविच्छिन्नरूप औदारिक, तैजस, कार्मण तथा देव नारकोमें भी तीन शरीर होते हैं। सिर्फ वहाँ औदारिककी जगह पर वैक्रिय समझ लेना। सामान्य रीतसे ऊर्ध्व और अधो ये दोनों स्थान ऐसे हैं कि जहाँ वैक्रिय शरीर प्राप्त हो सकता है। जन्मान्तरके कर्मसे ऐसे शरीर पानेके अधिकारी जीव ही वहाँ उत्पन्न होते हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट समझ लें कि कोई मुनिराज, तपश्चर्यादि द्वारा प्राप्त लब्धिसे 'आहारक. शरीर जब बनाते हैं तब औदारिक शरीरी मुनिके चार शरीरवाले समझना चाहिए। वैक्रिय तथा आहारक इन दोनों शरीरोंको समकालमें कभी भी रच सकते नहीं है। इस लिये कमसे कम दो (मतांतरसे सिर्फ एक ही) और अधिकसे अधिक जीव चार शरीरधारी हो सकते हैं। तैजस, कार्मण ये दोनों शरीर भव्य जीवों (जो मोक्षमें जानेवाले होते हैं वे ) के लिए अनादिसांत होते हैं। जहाँ तक शरीर है वहाँ तक संसार है। इन शरीरोंका 578. आहारक शरीरी मुनिमें वैक्रिय शरीर रचनेकी शक्ति होती है, लेकिन एक साथ दो दो लन्धिका उपभोग हो सकता नहीं है। इसलिए चार शरीर कहे हैं। लेकिन सत्तोकी अपेक्षासे पाँचों शरीर बनानेकी शक्ति उनमें होती हैं।