Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 710
________________ * 314 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . नतीजा (फल) अमुक ही आयेगा, ऐसा समझनेके बाद हिताहितकी प्रवृत्ति-निवृत्तिमें जो बुद्धि जुड़ जाती है वह / ये चारों बुद्धि मतिज्ञानके ही प्रकार स्वरूप हैं। व्यंजनावग्रहका कालमान जघन्य आवलिकाके असंख्यातवें भागका और उत्कृष्टसे श्वासोच्छ्वास पृथक्त्व, अर्थावग्रहका कालमान निश्चयनयसे एक समय और व्यवहारनयसे अन्तर्मुहूर्त तक, ईहा तथा अपायका कालमान अन्तर्मुहूर्त तक और धारणाका संख्याताअसंख्याता भव तक होता है / इससे यह साबित होता है कि धारणाका संस्कार सैंकडों-हजारों साल तक टिक सकता है। कुछेक घटना या प्रसंगों द्वारा इस बातकी. प्रतीति हमें होती है। यह मतिज्ञान एक या एकसे अधिक इन्द्रियोंसे तथा मनसे अथवा मन और इन्द्रियाँ इन दोनोंके संबंधसे होता है। सिर्फ इन्द्रियनिमित्तक मतिज्ञान ही 'मन' की प्राप्तिके बिना जन्मते एकेन्द्रियसे लेकर असंज्ञीपंचेन्द्रिय तकके जीवोंमें होता है। और अनिन्द्रियनिमित्तक अर्थात् जिसमें इन्द्रियोंका नहीं लेकिन सिर्फ मनका ही व्यापार होता है ऐसा ज्ञान ‘स्मृति' नामकी मतिके प्रकारके अंतर्गत आता है। लेकिन जिसमें मन अथवा इन्द्रियाँ इन दोनोंमेंसे किसी एकका भी व्यापार न होने पर भी लता या वल्लरी किसी पेड़, दीवार अथवा दालान ( बरामदा) पर चढ़ जाती है। यह अस्पष्ट ओघज्ञान सिर्फ मतिज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशमके कारणसे ही है / वनस्पति जगतमें मनुष्य जैसी भावनाएँ अथवा विविध प्रकारके लक्षण जैसे कि शरमाना, गुस्से होना, हँसना, दूसरे जीवको मारना, मान, माया, लोभ, शंगारिकभाव इत्यादि देखा जाता है / ये सभी ओघसंज्ञाएँ इसी ज्ञानके ही आभारी है। जागृत रहकर मनका विवेकपूर्वक उपयोग अपनी प्रवृत्तिमें करनेवाले हम सबमें इन्द्रिय और अनिन्द्रिय (मन) निमित्तक मतिज्ञान होता है। ____ आत्माको इन्द्रियके विषयोंका अथवा पदार्थका जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह दो प्रकारसे होता है-१. श्रुतनिश्रित और 2. अश्रुतनिश्रित / एक बार अन्योपदेश अथवा श्रुत-शास्त्रग्रन्थके अध्ययन अध्यापन द्वारा पदार्थ अथवा शब्दोंके वाच्यवाचक भावके संकेतका ज्ञान हो जानेके बाद, फिर जब किसी पदार्थ अथवा शब्दका हृदय अथवा बुद्धिमें यथार्थ मतिज्ञान किया जाता है तब वैसा मतिज्ञान भूतकालीन श्रुतानुसारि, दूसरे शब्दोंमें श्रुतपरिकर्भित होनेसे श्रुतनिश्रित मति कहा जाता है। जिन्हें हम जानते हैं ऐसे अनेक पदार्थ जब हमारी आँखोंके सामने आ जाते हैं

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