Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 733
________________ * किमाहारद्वार * * 337 . एक अर्थ यह हुआ। अब किमाहार शब्दको सौमासिक मानकर दूसरा अर्थ निकाले तो जीव किस शरीरसे आहार ग्रहण करता है ? और तीसरा अर्थ निकलता है कि कौनसे जीव कितनी दिशाओंमेंसे आये हुए द्रव्योंका आहार करते हैं ? इत्यादि व्याख्या इस द्वारमें कही जायेगी। इसमें पहले और दूसरे अर्थकी परिभाषा इसी ग्रन्थकी 331 वी गाथाके विवे. चनमें (पृष्ठ 190) कही गयी है / ___इसलिए अब यहाँ तीसरे अर्थकी परिभाषा करते हैं। अलबत्ता संग्रहणी ग्रन्थके वाचकोंके लिए यहाँ परिभाषा देना अत्यावश्यक नहीं है फिर भी किमाहारमें यहाँ जरूरी होनेसे दी गयी है। इसी तीसरे अर्थका अनुसरण करके आगमादि ग्रन्थान्तरोंमें इसका दूसरा-'दिगाहार' ऐसा नाम भी दिया गया है। जैन दर्शनका विश्व चौदह जेलोक प्रमाण है, जिसमें दृश्य विश्व (वर्तमान भारतक्षेत्रवर्ती वर्तित पाँच खण्ड प्रमाण ) तो सागरके सामने बँद जितना भी नहीं है तो अदृश्य विश्व-ब्रह्मांड कितना असीम-विराट होगा ? इसकी तो कल्पना ही करनी पडेगी। और यह विश्व सूक्ष्म-स्थूल, स्थिर-अस्थिर, गतिमान-अगतिमान, अति अल्पायुषी-अति दीर्घायुषी इस प्रकार विविध जातिके जीवोंसे व्याप्त हैं, उनसे ठसाठस भरा हुआ है। स्थूल या सूक्ष्म . पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति रूप अनेक जीव वह और स्वर्ग, मृत्यु, पातालवासी सभी देव, पृथ्वी पर विद्यमान सभी मनुष्य-पशुपक्षीगण तथा क्षुद्र जन्तुरूप तिर्यंच तथा पृथ्वीके गर्भमें विद्यमान नारक इन सब जीवसृष्टिसे विश्व भरा पड़ा है। इनमेंसे कुछ पृथ्व्यादि सूक्ष्म जीव हवा-अवकाशमें भी रहते हैं। ये जीव लोगोंके बीच भी हैं और लोकके छोर पर या कोने-बोनेमें भी होते हैं। इसी लोकमें सूईकी नोकका अरबोंवा जितना भाग भी ऐसा नहीं है जहाँ सूक्ष्म जीव नहीं होते ! .. उपर्युक्त तमाम जीवोंके आहारके तीन प्रकार सोचनेपर मिले हैं। ओज, लोम और कवल / इनमें यहाँ लोमाहारको लेकर मुख्यतः सोचा गया है। इनमें ओज तथा कवल आहारके लिए क्षेत्र तथा काल मर्यादित है जबकि इसके दोनों अमर्यादित है। 653. केन वा शरीरेणाहारोऽस्येति किमाहार इत्यपि / (संग्र० टीका) 654. के जीवाः कतिभ्यो दिग्भ्यः आगतानि द्रव्याण्याहस्न्तीति / देखिए जीवाभिगम, लोकप्रकाशादि। 655. एक राजमें असंख्य योजन-अरबों मील होते हैं / 'राज' यह जैन गणितका क्षेत्रका नाप दिखलानेवाला शब्द है। .656. आहार वर्णनके लिए देखिए गाथा 183 से 185 तकका अनुवाद / बृ. सं. 43

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