Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 732
________________ * श्री बृहत्संग्रहमीरत्व-हिन्दी भाषांतर * जाते हैं। दर्शनसे चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल लेना है। इसके हरेकके पीछे 'उपयोग' शब्द लगानेसे चक्षु उपयोग आदि शब्द बनते हैं। ये बारह प्रकारोंका स्वरूप ग्यारहवें तथा बारहवें द्वारमें बताया गया हैं। सर्व सामान्य संसारी जीव कर्माधीन होनेसे इनका उपयोग अविरत और पूर्ण रूपसे वर्तित होता नहीं लेकिन त्रुटक त्रुटक और अल्पांशसे होता है, जब कि तीर्थंकरों, सर्वज्ञों तथा सिद्धोंमें तो अपूर्णता अथवा खण्डितताके प्रतिबंधक कर्मरूप कारणोंका क्षय होनेसे उनमें अविच्छिन्न तथा सर्वोशसे होता हैं। 16. उववाय [उपपात]-इसका शब्दार्थ तो–'उत्पन्न (पैदा) होना' इतना ही होता है, लेकिन उपलक्षणसे इसकी संख्या तथा विरहकी बात भी इसी द्वारमें कहनेका. अभिप्रेत है। इसलिए कौन-सी गतिमें एक ही समय पर ( समकालमें ) कौन-सी गतिके, कितने जीव संख्यासे पैदा होते हैं अर्थात् जन्म लेते हैं ! इसके अतिरिक्त विरहकाल प्रमाण कहनेका उद्देश्य भी है कि कौन-सी गतिमें एक जीव उत्पन्न होनेके वाद दूसरे जीवको उत्पन्न होनेमें कितना समय लगता है ? 17. चवण [च्यवन]-इसका अर्थ होता है क्षय होना अथवा अवसान होना / : उपपातकी तरह इस द्वारको भी उपलक्षणकी द्रष्टिसे दो प्रकारसे कहना अभिप्रेत है। अर्थात् किस गतिमेंसे समकाले एक ही कालमें, कितने जीवोंका अवसान होता है और विवक्षित कोई भी गतिमें एक जीवकी मृत्यु होनेके बाद, दूसरे जीवकी मृत्यु होनेके बीच कितना समय व्यतीत है ! इस कालनियमको दर्शाना ही च्यवन बिरह है। 18. ठिई [स्थिति]-अर्थात् आयुष्य मर्यादा कथन / जीवोंके जघन्योत्कृष्ट आयुष्यकी विविध काल मर्यादाको दिखलाना ही 'स्थिति' कहा जाता है। 19. पजत्ति [पर्याप्ति]-अर्थात् जीवन जीनेकी शक्ति / उपर्युक्त 16 से 19 तकके चारों द्वारकी परिभाषा इस ग्रन्थमें अच्छी तरहसे की गई है। इसलिए उन्हें यहाँ फिरसे दोहराना ठीक नहीं है। 20. किमाहारे [ किमाहारकः 1] इस प्राकृत शब्दका संस्कृत रूपांतर है किमोहारकः। किमाहारमें दो शब्द हैं- किम्+आहार / इसमें किम्का अर्थ होता है 'क्या' और प्राकृत आहारका अर्थ होता है, 'खानेवाला' / अब ये दोनों अर्थ संकलित करनेपर प्रश्नार्थक वाक्य बन जाता है कि जीव आहारक है या अनाहारक ? इसका 652. 'किमाहारे' त्ति-आहारयतीत्याहारकः ततः किमाहारको अनाहारको वा जीवः / /

Loading...

Page Navigation
1 ... 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756