Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 714
________________ * 318. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * स्थितिके अनुसार बोधमें न्यूनाधिकरूप असंख्य तारतम्य जो प्राप्त होता है वह बात स्पष्ट होती है। दूसरी एक बात सिद्धान्तके रूपमें समझ लें कि मतिके बिना श्रुत कभी उत्पन्न होता ही नहीं है। 'मइपुवं सुर्य' चुतंमतिपूर्व इत्यादि वचनके अनुसार श्रुत मति- . पूर्वक ही होता है। यह श्रुतज्ञान मनोनिमित्तक है उस प्रकार अन्य इन्द्रिय निमित्तक भी है। इसलिए यह ज्ञान हित-अहितके क्षेत्र में प्रवृत्ति-निवृत्ति करानेमें शक्तिशाली ( सामर्थ्यवान् ) है / . शंका-मति तथा श्रुत, इन दोनों के कारणरूप यदि (श्रोत्र इन्द्रियाँ तथा मन ही) है तो फिर ऐसे दो प्रकारके ज्ञानकी जरूरत ही क्या है ? क्या हम एक ही ज्ञान नहीं रख सकते ? समाधान-दोनोंके बीचका यह अलगाव अथवा अंतर इनके अलग अस्तित्वकी स्वीकृति देता है। मतिज्ञानका कार्य पदार्थके वर्तमानकालके सामान्य भावोंको जणानेका है, जब कि श्रुतज्ञानका कार्य त्रैकालिक तीनों कालके पदार्थोंको जणानेका है / इसका विषयक्षेत्र मतिसे भी बड़ा है। यद्यपि मतिज्ञान जीवमात्रको सर्वत्र अविरत विद्यमान रहता है इसलिए शाश्वत है, जब कि श्रुत अविरत रहता नहीं है इसलिए अशाश्वत ( नाशवंत) है / फिर भी वह मतिसे भी अधिक सूक्ष्म अर्थीका अनेक प्रकारसे बोध करता है। इस ज्ञानका सामर्थ्य इतना महान् भी है कि श्रुतके बलसे प्रस्तुत ज्ञान व्यक्तिमें ऐसा अनोखा क्षयोपशम प्रकटाता है कि सर्वज्ञया केवली भगवान किसी भी पदार्थकी जैसी परिभाषा करते हैं वैसी ही परिभाषा करनेमें (सर्वज्ञ न होने पर भी) समर्थ होता है। और ऐसे मुनि 'श्रत-केवली' के नामसे पहचाने जाते हैं / यह केवली' विशेषण छाद्मस्थिक चार ज्ञानमेंसे सिर्फ श्रुतको ही प्राप्य होता है। इन सब कारणोंसे मति-श्रुत ज्ञानोंके बीचका अंतर स्पष्ट होता है / इसलिए दोनोंका अस्तित्व अलग-अलग होना बहुत जरूरी है। 620. यह वचन सापेक्ष है / इसका भाव गुरुगमसे जान लेना / 621. श्रतकेवली जब प्रवचन करते हैं तब यह कोई भी नहीं जान सकता कि ये सर्वज्ञ नहीं है। क्योंकि वे पदार्थोकी वैसी गहरी या अर्थभरी परिभाषा देते हैं। 622. यद्यपि सन्मतिकार तथा उपा० श्री यशोविजयजी महाराजने ज्ञानबिन्दुमें श्रुतज्ञान यह एक प्रकारका मतिज्ञान ही है ऐसा साबित किया है।

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