________________ * ज्ञानद्वार-ज्ञानकी विविध माहिती . * 331. जीवको एक ही समयमें मति अथवा केवलकी अपेक्षासे एक अथवा मति, श्रुत दो अथवा तीन या चार ज्ञान एक साथ मिल सकते हैं। लेकिन इनमेंसे उपयोग तो एक ही समयपर एक ही ज्ञानका हो सकता है। इसके सिवा पाँचों ज्ञानका परस्पर साधर्म्य, वैधर्म्य तथा अन्य स्वरूप ग्रन्थान्तरसे जान लेना। 'ज्ञान' तो समग्र विश्वके प्राणियोंके कार्य कारणभावमें जो अविनाभावी संबंधसे जुड़ा हुआ है, और जो सम्यक् अथवा मिथ्याके कारण सुख-दुःखमें निमित्तरूप बनता है और सम्यक् विश्वके संचालनमें मुख्यरूपमें भाग लेता है। यदि इस ज्ञान जैसी चीज ही न होती तो विश्व कैसा होता ! इसकी तो कल्पना ही करनी पड़ेगी। लेकिन न हो' ऐसा बनेगा नहीं। ये 'दर्शनगुण' और 'ज्ञानगुण' एक है या विभिन्न ? तो अपेक्षासे एक प्रकारसे एक है और अपेक्षासे भिन्न भी है। यद्यपि इस विषयमें बहुत वक्तव्य है जिसे ग्रन्थान्तरसे जान सकते हैं। समग्र विश्वमें ज्ञान ही एक सच्चा प्रकाश और जीवनका सच्चा राहबर है। यही जीवनके सर्व सुखों तथा शान्तिका मूल है। इसलिए ज्ञान तथा उसके साधन और ज्ञानकी आशतिना दूर करें। और इसके साथ ही इसकी कठोर ( प्रचण्ड ) औराधनाउपासना करें कि कोई न कोई जनममें हमारा प्रस्तुत पुरुषार्थ ज्ञानके भेदप्रभेदसे रहित ऐसे एक अभेद स्वरूप माने जाते केवलज्ञानकी प्राप्तिमें परिणमित हो। . 14. जोग (योग)-योगकी परिभाषा करनेसे पहले हम यह दिखाना चाहते हैं कि अलग अलग ग्रन्थ 'योग' शब्दका अर्थ कौन-सा करते हैं। 645. ज्ञानकी आशातना आज-कल प्रचण्ड रूपमें बढ़ी है / विज्ञानकी सहायतासे बनाए गए साधनसुविधाओंके कारण ज्ञानकी आशातना सरलतासे हो जाए ऐसी परिस्थितियोंका निर्माण हो गया है / एक प्रकारसे अखबार भी ज्ञान ही है / इसलिए कपडे, खानेकी चीजें अथवा अन्य सांसारिक कार्योंके लिए उसका उपयोग नहीं करना चाहिए / इसलिए उसमें न तो विष्ठा (मल) करना चाहिए और न तो उससे * विष्ठा साफ़ करना चाहिए / इसी प्रकार पुस्तकोंका भी वैसा ही दुरूपयोग हो रहा है / इसके कारण बड़े-बड़े पाप बँधते हैं / लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि इसके कारण पाप होता है ऐसा प्रजा जानती भी न हो, वहाँ वह बेचारी करे भी क्या ? अरे ! जैन भी जानते नहीं हैं / और जो जानते भी हैं वे पूरा अमल करते भी नहीं है / इसलिए इसका प्रचार करके प्रजाको पापकी राहसे बचाना चाहिए / 646. ज्ञान जाननेकी शक्ति होने पर भी ज्ञान न जानना वह भी ज्ञानशक्तिका गुनाह होनेसे शानावरणीय कर्म बँधता है /