________________ * 305 . * दर्शन द्वारका विवेचन * हरेक चीज मात्र सामान्य और विशेष इन दोनों प्रकारके गुणधर्मयुक्त होती है / यद्यपि वस्तुके बोधमें आपको खयाल आये या न आये फिर भी दोनों प्रक्रियाका उपयोग (समयान्तर) होता ही है। ___सामान्य धर्म-सामान्य धर्मके पर्यायवाची शब्दोंमें सामान्य रूप, सामान्य बोध, निराकार दर्शन, निर्विकल्प दर्शन, सामान्यार्थ ग्रहण इत्यादि हैं / और विशेष धर्मकेविशेष स्वरूप, विशिष्ट बोध, साकारदर्शन, सविकल्पदर्शन, विशेषार्थग्रहण इत्यादि पर्यायवाची शब्द हैं / जो कि वास्तविक रूपमें गहराईसे सोचे तो 'दर्शन' यह भी एक प्रकारका ज्ञान ही है। इस ज्ञानको हम दो विभागोंमें बाँट सकते हैं। एक तो साकारोपयोग रूप ज्ञान और दूसरा निराकारोपयोग रूप ज्ञान। यह दूसरा ज्ञान ही 'दर्शन' कहलाता है। इसके अतिरिक्त दूसरी बात यह भी है 'यह घट है' इतना सामान्यज्ञान तत्त्वसे तो साकार स्वरूप होनेसे ज्ञान है ही लेकिन आगे मिलनेवाले विशेष ज्ञानोंकी अपेक्षासे सामान्य स्वरूपयुक्त होनेसे ज्ञानमें दर्शनका उपचार किया है। यह दर्शन उस ज्ञानगुण रूप होनेके विविध प्रकारका बोध इत्यादि करानेके लिए इसको अलग किया गया है / - मिसालके तौर पर देखें तो- घटको ( कुंभको ) देखने पर 'यह घट है' ( लेकिन पट-वस्त्र, परदा, नहीं है) इतना ही जो बोध होता है उसे 'दर्शन' कहा जाता है। यह पहली ही नजरसे होता वोध है। तदनन्तर घट (कुंभ)के विषयमें जो आगे चिंतन किया जाता है तो वह चिंतन विशेष ( विशेषण ) रूपसे विविध पर्यायोंके स्वरूपमें प्राप्त होनेसे वह ज्ञानकी कक्षामें आता है। वह किस प्रकार आता है ? तो उस घटको देखनेके बाद हमारे मनमें द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव स्वरूप विचार उठते हैं। इसका अर्थ यह है कि कुंभको देखनेके बाद हमारे मनमें ये विचार उठते हैं कि यह घट किस चीजमेंसे बनाया है ? द्रव्यसे - मिट्टीसे / अगर मिट्टीसे....तो मिट्टी भी किस प्रकारकी होगी ? और अगर घट धातुसे बनायी गयी हैं तो धातु मी किस प्रकारकी है ?....इत्यादि-इत्यादि 'द्रव्य' सम्बन्धी विचार उठते हैं। और 'क्षेत्र' से सोचें तो यह घट किस क्षेत्र (प्रदेश)का होगा ! यह घट पाटणका है, अहमदाबादी है या कश्मिरी ! यह 'क्षेत्र' (स्थल)के रूपमें सोचा गया / 'काल' को लेकर सोचें तो 602. इसमें व्यवहार और निश्चय नयकी विविध अपेक्षाएँ है जिन्हें ग्रन्थान्तरसे देख लें। 7. सं. 39