Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 671
________________ * पाँच शरीरोंके विवेचन * .275 . - ये पाँच शरीर क्रमशः सूक्ष्म-सूक्ष्मपरिणामी आदि पुद्गलोंसे बने हैं। अतः औदारिक शरीर अन्य चारों शरीरोंसे स्थूल पुद्गलोंका बना हुआ है। उसीसे वैक्रिय शरीरके पुद्गल अधिक सूक्ष्म, यों उत्तरोत्तर शरीर क्रमशः अधिकाधिक सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम पुद्गलके बने होते हैं। इसके अतिरिक्त ये आठों वर्गणाएं, जिन पर समस्त जगत का आधार है, इन्हीं आठों वर्गणाओंमें पहली वर्गणा भी औदारिक ही है। इससे भी यह कल्पना हो सकती है कि वह स्थूल पुद्गलोंका ही होगा तथा आठवीं अंतिम वर्गणा कार्मण नामकी है, जिसमेंसे कार्मण शरीर बनता हैं। वह सबसे सूक्ष्म वर्गणा है / पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति तथा सूक्ष्म जंतु, पशु-पक्षीगण, मनुष्यों इत्यादिके शरीर औदारिक अर्थात् (प्रायः) स्थूल होते हैं। इसका मतलब यह कि इन्हें हम ( स्कंध बने तब) अपने चर्मचक्षसे देख सकते हैं। शेष समी सूक्ष्म-सूक्ष्मतर होनेसे हम उन्हें देख सकते नहीं हैं। ___ यहाँ स्थूल तथा सूक्ष्म शब्द पारिभाषिक रूपमें समझना चाहिए। वर्गणाओंमें परमाणुओंका बाहुल्य ( ढेर ) ज्यों ज्यों बढ़ता जाता है त्यों त्यों नतीजा ( स्वरूप) सूक्ष्मातिसूक्ष्म होता जाता है। इसी स्थूल तथा सूक्ष्म नतीजोंको समझनेके लिए दोनोंकी मिसाल देखनी चाहिए। . एक बेंत लम्बी-चौड़ी सोनेकी एक संदूकची है और इससे दोगुने नापकी रूईके चिथडोंमेंसे बनायी हुई दूसरी संदूकची मी है। फिर भी वजनमें (तौलमें) अधिक सोनेकी ही होगी और दूसरी तो एकदम हलकी होती है। एकमें क्षेत्रप्रमाण कम, परंतु प्रदेशपरमाणुओंका. गुच्छा अधिक ज्यादा और इससे सघनता अधिक होती है। जब कि रूईकी संदूकचीका क्षेत्रप्रमाण अधिक सही, लेकिन प्रदेश कम होता है। सुवर्णके पुद्गलोंमें सूक्ष्मता अधिक है। इसलिए थोड़ी सी जगहमें अधिक समा जाते हैं और वह वजनदार बनता है, अर्थात् चीज ( सुवर्ण) कम फिर भी वजन अधिक / जब कि रूईमें सूक्ष्मता कम है। इसलिए चीज (रूई ) अधिक होने पर भी वजन कम-हलका लगता है। अब यहाँ आप औदारिक शरीर रूईके स्थान पर और कार्मण सुवर्णके स्थान पर घटा सकते हैं। इस प्रकार पाँचों शरीरोंके बीच भी परस्पर ऐसी स्थूलता सूक्ष्मता होती है। इन्हें स्वयं सोच लें। 2. प्रदेशसंख्याकृत भेद-इन्हीं पाँचोंमेंसे सबसे कम प्रदेश औदारिकके है। तथा उसके बादके शरीरोंमें संख्याकी दृष्टिसे क्रमशः वृद्धि होती जाती है। पहला औदारिक शरीर अल्प परमाणुवाले पुद्गल स्कंधोंका ( अनंत होने पर भी अन्य चारकी अपेक्षा),

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