________________ . 274. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * तो इसका समाधान इस प्रकार है कि-शरीर वे पौद्गलिक द्रव्य हैं। इन्हें आकारादि होता है, फिर भी ये शरीर इतने तो अति सूक्ष्म होते हैं कि हमारे चर्मचक्षुसे वे नहीं दिखायी देते हैं। और साथ-साथ आत्मा भी हमें नहीं दिखायी पड़ती है। लेकिन इससे वस्तुका अस्तित्व ही नहीं है ऐसा कभी भी समझना नहीं चाहिए / ____प्रारंभके तीनों शरीरोंकी गमनागमनकी मर्यादा अंकुशित है। जब कि अंतिम दो शरीर समग्र लोकमें हर जगह आ-जा सकते हैं। तैजस-कार्मण शरीर तथा आत्मा इतने तो सूक्ष्ममानवाले होते हैं कि दीवारों, घरों, पर्वतों तथा पृथ्वी आदि किसीसे भी पराभव या प्रतिघात पाते नहीं है। ये वायुकी तरह हर किसी जगहसे पसार हो सके ऐसे अति सूक्ष्मातिसूक्ष्म नतीजा होते हैं। साथ ही परभवमें जाकर जो तुरंत ही आहार ग्रहण करते हैं यह इसी शरीरके कारण ही हो सकता है। औदारिक शरीरसे उत्तरोत्तरके शरीर क्रमानुसार सूक्ष्म-सूक्ष्मतर होते जाते हैं / इस शरीरयोग्य पुद्गलस्कंधोंमें उत्तरोत्तर परमाणुओंका बाहुल्य अधिक होता है, जिसके कारण उसका स्वरूप भी उत्तरोत्तर सूक्ष्म बनता जाता है। ये पाँचों शरीर भिन्न-भिन्न वर्गणासे बने होनेसे हरेक शरीर अलग-अलग विशेषताओंको धारण करते हैं। ये हरेक स्वतंत्र हैं। इनमें प्रारंभके तीनों शरीरोंको इन्द्रियादि अंगोपांग होते हैं, जब कि शेष दो शरीरोंमें इसका अभाव होता है। वे पाँचों शरीरोंका वर्णन करनेके बाद अब इन्हीं शरीरोंसे संबंधित अन्य दस बावतोंका स्वरूप कहा जाता है। 1. कारण भेद-अगर किसीको यह शंका हो कि पाँचों शरीरोंकी रचना तथा कार्यमें भिन्नता क्यों होती है ? वे सभी एक ही प्रकारके एक समान कार्य क्यों नहीं करते हैं ! तो ऐसी शंकाके समाधानके लिए 'कारण' प्रस्तुत करना चाहिए। इस लिए यहाँ प्रथम कारणकृत भेद दर्शाया है। ____ जब कि पांचों शरीर पुद्गल परमाणुओंके ही बने हुए हैं। लेकिन परमाणुओंके स्कंध द्वारा तैयार होती वर्गणा तथा परमाणुओंका संख्याप्रमाण ये दोनों कारणोंसे परमाणुओंके स्कंधोंके कार्यमें भिन्नता आती है। परमाणुओंके जातिभेदसे ही कार्यभेद जनमता है। विश्वमें प्रवर्तित औदारिकादि आठ प्रकारकी प्राय वर्गणामेंसे ( अमुक-अमुक प्रकारके पुद्गल) पांच शरीरोंके लिए उपयोगी, विभिन्न पाँच वर्गणाओंमेंसे पांच शरीर बनते हैं।