Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 679
________________ * संस्थानद्वारका विवेचन * .283. रुपी ऐसे अजीव पदार्थोंके पाँच संस्थान परिमण्डैले, 2. वृत्त (गोलाकार). 3. त्रिकोण (त्रिभुज), 4. चतुष्कोण-चौकोन आयत ( लम्बा, विस्तृत)-दीर्घ / परिमंडल-जो बीचमें पोला और गोल होता है उसे परिमंडल कहते हैं / जैसे चूडी / वृत्त अर्थात् विना पोलापन वृत्ताकार प्रतरकी तरह ठोस (धन) गोल / मिसालके तौरपर कुम्हारका चक्र, भोजनकी थाली, रूपया इत्यादि / त्रिकोणमें सिंघाडा, चौकोन (चतुष्कोण) में पादपृष्ठ-कुंभी आदि और आयत ( लम्बा, विस्तृत ) में दंड, लकडी इत्यादि। ... ये सभी आकार घन और प्रतरसे दो भेदवाले हैं / और इनमें परिमंडलको छोड़कर शेष चार पुनः ओजप्रदेशसे तथा युग्मप्रदेशसे दो-दो भेदवाले हैं। ओजप्रदेशी संस्थान उसे कहा जाता है जो विषमसंख्यावाले ( अर्थात् एकी अंककी संख्यावाले ) प्रदेशोंसे बनता है / और जो समसंख्या ( अर्थात् दो की संख्यावाले ) प्रदेशसे बनता है उसे युग्मप्रदेशी कहा जाता है। जबकि परिमंडलमें तो प्रतर और धने ये दो ही विभाग हैं। अब हम उन्हीं सभी प्रकारोंको क्रमशः समझ लेते हैं। १-परिमंडल प्रतरपरिमंडल-यह बीस प्रदेशी बीस प्रदेशावगाही होता है। पूर्वादि चारों दिशाओंमें चार-चार अणु तथा विदिशामें एकैक अणु स्थापनेसे यह आकार बनता है। . सबसे आद्य-जघन्य से जघन्य प्रतर यह है। इससे छोटा कमी भी होता ही नहीं है। .. धनपरिमंडल-ये चालीस प्रदेशी चालीस प्रदेशावगाही होते हैं / पूर्वोक्त बीस प्रदेशोंके ऊपर बीस प्रदेश रखनेसे वह घन बनता है। घनपरिमंडलका यह आद्य आकार है। ... ओजप्रदेश प्रतरवृत्त-यह संस्थान पाँच अणुसे निप्पन्न, पाँच अवकाश प्रदेशावगाढ है / यह आकार एक अणुमध्यमें और चारों दिशामें संलग्न चार स्थापनेसे छोटेसे छोटा पंचप्रदेशी वृत्ताकार बनता है। युग्मप्रदेश प्रतरवृत्त—यह प्रतरवृत्त बारह प्रदेशका तथा बारह प्रदेशावगाही होता है / चार आकाशप्रदेशोंके ऊपर चार अणु स्थापनेसे तथा उसके चारों ओर वृत्ताकारमें आठ अणु स्थापनेसे बारह प्रदेशी प्रतराकार बनता है। 589. परिमंडले य वट्टे तसे चउरंस आयए चेव, घनवयरपढमवजं ओयवएसे य जुम्मे य // [उत्तरा. नियुक्ति] 590-591. प्रतर अर्थात् समतल और घन अर्थात् ठोस लड्डू जैसा /

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