________________ देवोंका श्वासोच्छ्वास तथा आहारका कालप्रमाण ] गाथा-१८२ [361 ___ * तभी सार्वभौम टीकाकार श्री मलयगिरिजी महाराजने नीचेकी तरह संगति ( अर्थ ) करनेको कहा है। दस हजार सालके जघन्यायुषी देवोंके लिए 178 वी गाथामें बताया गया है कि वे एक अहोरात्रि बीत जानेके बाद (एकांतर पर ) आहार तथा सात स्तोक बीत जाने पर उच्छ्वास लेते हैं। अब दस हजार सालसे आगे समय-मुहूर्त, दिन, मास, वर्षादिकी ज्यों ज्यों वृद्धि होती जाती है, त्यों त्यों ( उन-उन देवोंके लिए) उच्छ्वास—आहारमानमें (जिस दिन मुहूर्त पृथक्त्व है उसमें ) थोड़ी-थोड़ी वृद्धि करते जाना / __अब यह वृद्धि कहाँ तक करे ? तो काल आयुष्यवृद्धि युगपद् आहार-उच्छ्वास वृद्धि करते-करते जब एक अर्थात् हजारों, लाखों, करोडों, संख्य और असंख्याता वर्ष पर अर्थात् एक पल्योपम पर पहुंचते हैं, उसी तरह साथ-साथ एक अहोरात्रमें समय मुहूर्तकी वृद्धि करते-करते 2, 4, 5 ऐसे आहार दिनमान तथा सात स्तोकमें भी उसी तरह लव, घटिका मुहूर्तादिककी वृद्धि करते जाना। इससे क्या होगा कि एक पल्योपम स्थितिवाले देवोंके लिए दो से लेकर नौ दिन तकका आहार ग्रहण अन्तर तथा दो से नौ मुहूर्तका उच्छ्वास ग्रहण अन्तर बराबर आ मिलता है। . इसका भाव (अर्थ) यह निकला कि गाथामें जो मान कहा गया है वह एक पल्योपमकी स्थिति धारण करनेवाले देवोंके लिए है, इनसे उपरके लिए नहीं, तब ऊपरि लोगोंके लिए क्या ? तो इसके बाद 2-3-4 आदि पल्योपमवाले देवोंके लिए दिन और मुहूर्त पृथक्त्व कालमें अन्तर बढ़ाते जाना / इससे क्या होगा कि-सैकडों, हजारों, लाखों, करोडों पल्योपमोंकी एक ओर ज्यों-ज्यों वृद्धि होती जायेगी त्यों-त्यों युगपत् आहारमानमें दिनोंसे खिसककर मास पर, साल पर और सैकडों पर जा पहुंचेगा और उसी अनुसार जो उच्छ्वासकालमान मुहूर्त्तका था वहाँसे आगे बढ़कर प्रहरों और दिनों पर जायेगा / ऐसा करते-करते जब हम 10 कोडाकोडी पल्योपमका एक सागरोपम होनेसे बराबर पूर्ण एक सागरोपम पर पहुंचेंगे तब वैसी स्थितिवाले देवोंका पूर्व कथनानुसार एक हजार सालका आहारग्रहणमान और एक पक्ष पर उच्छ्वास ग्रहणमान अन्तर बराबर आ ही जाता है / [182 ] बृ. सं. 46