________________ * बंधे हुए आयुष्य किस सात कारणोंसे खंडित होता है ? वह * * 199 . * यह मन-हृदय मनुष्यके उपरांत (अमुक) पशु पक्षियोंको भी मिला है। वह पुद्गल द्रव्य होनेसे पुद्गलके संकोच, विकोच स्वभावके कारण छोटी देहमें, बड़ी देहमें 15 देहको व्याप्त होकर रहा है। मन शरीरमें अमुक जगह पर ही रहा है ऐसी मान्यता बराबर नहीं है। उदाहरणके तौर पर कोई कहे कि मन हिया-हृदयके भागमें जमकर रहा है तो यह बात बराबर नहीं है। क्षणभर मानो कि अगर ऐसा ही हो तो हृदयके सिवायके शरीरके किसी भी भागको किसी चीजका स्पर्श हो, उष्ण या शीत पदार्थका हो तो कुछ स्पर्श हुआ है उसका अथवा वह शीत है या उष्ण है उसका कुछ ख्याल आता ही नहीं। पैरमें कांटा लगे तो भी दुःखका कुछ अनुभव नहीं होना चाहिए। जबकि सच्ची परिस्थिति यह है कि शरीरके किसी भी भागमें किसी भी चीजका स्पर्श हो या सुई भोंकी जाए तो तुरंत ही उसके स्पर्शका और साथ साथ स्पर्शजन्य वेदनाका जो अनुभव होता है वह होता ही नहीं। हाँ ! इतना सही कि हरेक वस्तुके मर्मस्थान अवश्य होते हैं, इस कारणसे मनका मर्मस्थान (मर्म अर्थात् मुख्य-महत्त्वका) हृदयका भाग है इतना जरूर कहा जा सकता है / ___ एक बात ध्यानमें रखना कि 84 लाख जीवायोनिरूप संसारमें 58 लाख योनिगत जीव संकुलमें जन्म लेनेवाले अनंता जीवोंके तो मन ही नहीं होता। तत्पश्चात् जीवके विकास क्रमके अनुसार पंचेन्द्रिय जीवोंवाली योनिमें मनकी शुरुआत होती है / इसमें भी दो भाग हैं। एक मनवाले पंचेन्द्रिय और दूसरे मन रहित / जिसे तत्त्वज्ञानकी परिभाषामें (मनवालों को) संज्ञी और (मन रहितोंको) असंज्ञी कहे जाते हैं। अब गाथाके मूल अर्थको देखें ' .. (1) अध्यवसान-अध्यवसाय आत्मामें या मनमें उत्पन्न होते असंख्य विचारों में से, आयुष्य क्षयमें तीन प्रकारके विचार मृत्युको आमंत्रित करते हैं। तीन प्रकार इस तरह हैं। 1. रागदशामेंसे जो राग उत्पन्न हुआ हो वह राग अनेक संकल्प-विकल्पों द्वारा पुष्ट होता है और जिसके प्रति आपका राग अथाग, अविहड और रोम रोम उत्पन्न हुआ हो तब वह व्यक्ति या वस्तु प्राप्त नहीं होती, अनेक युक्ति-प्रयुक्तियाँ, छलप्रपंच, लोभलालच और अनेक रीतसे मेहनत करने पर भी जब न मिले तब, वह रागवाली व्यक्ति या वस्तुके अलाभमें जीव झुर झुर कर ऐसा बन जाए कि अंतमें जब ज्वर-बुखार 495. यहाँसे लेकर यह गाथा पूर्ण हो तब तकका भाषांतर, छपे पुराने फरमे सं. २०२०में गूम हो जानेसे फिरसे सं. 2036 में लिखा गया है।