________________ * पर्याप्ति संबंधी बारहवाँ परिशिष्ट . .229 . संज्ञिपंचेन्द्रिय जीवोंमें ही हो सकती है। फिर भी दोहन्द्रिय आदि जीवोंमें भाषापर्याप्ति नामकर्मकी अनुकूलता हो और संक्षिपंचेन्द्रिय जीवोंमें मनःपर्याप्ति नामकर्मकी अनुकूलता हो तो ही भाषक-बोलनेकी शक्ति और विचार करनेकी शक्ति प्रकट होती है। बोलनेकी भाषकशक्तिमें भाषायोग्य पुदगलोंका ग्रहण, परिणमन, आलंबन और विचारशक्तिमें मनोयोग्य पुद्गलोका ग्रहण, परिणमन, आलंबन और विसर्जन है। 8. प्रथमकी आहार, शरीर और इन्द्रिय इन तीनों पर्याप्तियों में ग्रहण किये गए और उन उन रूपमें परिणत हुए औदारिक आदि पुद्गल औदारिक आदि शरीरके साथ संबद्धरूपसे रहते होनेसे इन तीनों पर्याप्तियों में ग्रहण और परिणमन ये दो क्रियाएँ थीं। लेकिन श्वासोच्छवास, भाषा और मन इन तीनों पर्याप्तियों में ग्रहण किये गए और उन उन रूपमें परिणत हुए श्वासोच्छ्वासके, भाषाके और मनके पुद्गलोंका औदारिक आदि शरीरके साथ अधिक समय संबंध रहता नहीं है / परंतु निःश्वासरूपमें, वचन रूपमें या विचार रूपमें उन उन पुद्गलोंका विसर्जन होता होनेसे और विसर्जनकी क्रिया आलंबनपूर्वक ही होती होनेसे बादकी तीनों पर्याप्तियोंमें ग्रहण, परिणमन, आलंबन और विसर्जन इस तरह चार क्रियाएँ अवश्य होती हैं। 9. आहार, शरीर और इन्द्रियपर्याप्तिके कार्य करते हुए श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन इन तीनों पर्याप्तियोंका कार्य उत्तरोत्तर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम होनेसे बादकी पर्याप्तियों में अधिक समय लगता है। 10. ऊपर बताये कारणसे ही उत्पत्तिके प्रथम क्षणसे ही उस उस भवकी अपेक्षासे वर्तित छः, पांच या चार सारी पर्याप्तियोंका आरंभ समकाल में होता है, परंतु समाप्ति अनुक्रमसे होती है। 11. आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मनकी लब्धि यह भिन्न वस्तु है / जबकि आहार, शरीर, इन्द्रिय यावत् मनकी शक्ति अर्थात् पर्याप्ति यह भिन्न वस्तु है, और लब्धि तथा शक्तिके कारणरूप कर्म भी भिन्न भिन्न हैं। 12. निगोदमें पतित भव्य जीवको मोक्षकी लब्धि अर्थात् मोक्षकी योग्यता है, लेकिन मोक्ष पानेकी शक्ति नहीं है। यह शक्ति तो मनुष्यत्व, सम्यग्दर्शन, शान, चारित्र आदि बाघ अभ्यन्तर अनुकूलता मिले तब ही प्रकट होते हैं। उसी तरह श्वासोच्छ्वास भाषक-मनोलब्धि उन उन जीवोंमें यथायोग्य अवश्य होती है, परंतु उन लब्धियोंका शक्तिरूप प्राकट्य उसे पर्याप्ति नामकर्मकी अनुकूलता हो तो ही होता है। इतने तात्पर्योको ध्यानमें रखनेके बाद अब पर्याप्ति विषयक क्रमशः निरूपण प्रस्तुत होता है / / .. उत्पत्तिस्थानमें पहुँचनेके साथ प्रथम क्षणमें ही जीव कार्मण काययोगकी मददसे औदारिक आदि नाम कर्मोदयके कारणसे औदारिक आदि शरीर योग्य पुद्गलोंको तथा श्वासोच्छवास योग्य पुद्गलोंको (और दोइन्द्रियसे असंशि पंचेन्द्रिय तकका उत्पत्तिस्थान हो तो भाषायोग्य पुद्गलोंको तथा संज्ञि पंचेन्द्रियका उत्पत्तिस्थान हो तो मनोवर्गणाके पुद्गलोंको) ग्रहण करता है।