________________ * भावेन्द्रियका वर्णन . * 239 . होने पर भी विषयबोध न होने दे। इस बोधके लिए वह शक्ति उपकारक है। अतः उसे उपकरणेन्द्रिय कही गई है। अतः आभ्यन्तर उपकरणके बिना केवल निवृत्ति इन्द्रिय बोध करानेमें समर्थ नहीं है। उदाहरण स्वरूप-निवृत्तिरूप चक्षुइन्द्रिय विद्यमान हो लेकिन अगर बाह्योपकरण स्वरूप बाहरके भागमें पत्थर आदि लगनेसे, बाहरके भागको नुकसान पहुँचे तो आँखसे बरावर देखा नहीं जाता। उसी तरह बाहरके आघात प्रत्याघातका असर निवृत्ति इन्द्रिय (जिसे पुतलीके अंदरका आँखका परदा ) को नुकसान पहुंचने पर पुद्गलगत जो शक्ति होती है वह नष्ट हो जानेसे परदा होने पर भी वह इन्द्रिय निरुपयोगी बन जाती है। इस तरह यह बात स्पष्ट होती है। इससे हुआ क्या कि प्रत्येक इन्द्रियमें स्पर्श-रसादि विषयग्रहण तब ही हो * सकता है जब उन पुद्गलोंमें उस उस विषयकी ग्रहण शक्तिका अस्तित्व हो। इस तरह उपकरणेन्द्रियकी सार्थकता समझना। . भावेन्द्रियका वर्णन भाव ,अर्थात् आत्मिक परिणाम / इन्द्रिय अर्थात् आत्मिक स्वरूप इन्द्रिय / / यह भावेन्द्रिय दो प्रकारकी है। 1 लब्धि और 2 उपयोग / 1. लब्धि अर्थात् इन्द्रियोंकी शक्तियाँ 2. उपयोग अर्थात् विषय ग्रहण अथवा विषय व्यापार / विशेष व्याख्या नीचे अनुसार है। लब्धि भावेन्द्रिय- उन उन इन्द्रियोंके स्पर्श-रसादि विषयोंके ज्ञानकी प्राप्तिमें अवरोधक ( मतिज्ञानावरणादि ) कर्मोंका ( आत्माके परिणाम स्वरूप ) जो क्षयोपशम विशेष वह / अथवा जीवको इन्द्रियों द्वारा उन उन विषयोंका बोध पानेकी जो शक्ति वह / उपयोग भावेन्द्रिय- अपनी अपनी ज्ञान-दर्शनावरणीयके क्षयोपशम रूप लब्धि अनुसार, उन उन विषयोंमें आत्माका जो ज्ञान प्रवृत्ति रूप व्यापार-उपयोग वह। अर्थात् आत्मा जिस समय जिस इन्द्रियके उपयोगमें वर्तित हो, उस समय वह उपयोग भावेन्द्रिय कहा जाता है। संक्षेपमें कहें तो स्पर्शादि विषयोंको जाननेकी क्षायोपशमिक शक्ति वह लब्धि इन्द्रिय और विषयज्ञानमें प्रवृत्ति वह उपयोग इन्द्रिय / - 533. इस तरह नासिकाकी आभ्यन्तर निवृत्ति अखंड है, लेकिन अगर नाकमें प्रलेष्म या मैल जमा हो तो गन्धशान जल्दी नहीं होता / 534. इसकी दूसरी तरहसे भी व्याख्याएँ होती हैं / 535. उपयोग यह आत्माका परिणामविशेष है / और वह ज्ञानदर्शन स्वरूप है / 536. लब्धि, निवृत्ति और उपकरण तीनों द्वारा उन उन विषयोंका सामान्य या विशिष्ट बोध हो वह भी उपयोग भावेन्द्रिय कहलाए /