________________ * 2000 * श्री वृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . आवे, उसका शरीर क्षीण होता जाए, ( क्षय) तपेदिक रोग हो या तो हार्टफेल होनेसे वह आयुष्यकी डोरीको तोड डालता है। इनमें दूसरे सब रागसे विजातीय-स्त्री-पुरुषके विचका राग किसी अलग परिस्थितिका निर्माण करनेवाला है। मानव जीवनमें स्त्री-पुरुषके विचके रागने सैकडों मनुष्योंको आत्महत्याएँ करवाई हैं। इनमें भी स्त्रीसे पुरुषका प्रमाण अधिक होता है / स्त्रीसे पुरुषका मन ऐसी बावतमें अधिक ऊमिशील, आवेशमय, उतावला तथा राग जागने पर विचार और विवेकशून्य बन जाता है। खुद कौन है उस परिस्थितिको और जिस स्थानमें या जिस स्थितिमें हैं वह वहाँ शक्य है या नहीं ? उसका सान-भान विसर जाता है। इस विषयमें एक घटनाको सोचें / रागदशासे जल्दी होती मृत्युके बारेमें एक उदाहरण . जैसे कि-किसी युवान-पुरुषको किसी युवती-स्त्री पर आकर्षण होनेसे राग जन्मा, फिर उस रागमें वासनाकी विकृति जुड गई, अनादिकालजन्य संस्कारको लेकर कामाग्नि प्रज्वलित हुई। लौटतंकी कोई शक्यता न रही, इसलिए अमिने दावानलका रूप लिया / ऊँघ-भूख, प्यास, आनंद सब खतम हुआ। वह स्त्री किसी भी संयोगमें मिलनेवाली नहीं थी। अंतमें उसे याद कर करके, उसे अनुलक्ष्य भांति-भांतिके मनोरथोंके महलो बांधता ही रहा, इसमें उसे असफलता मिलनेसे शीघ्र हताश होनेसे मन भंग हो गया, ऐसा व्यक्ति टी. बी.-तपेदिक, हार्टफेल या तो आत्महत्याको आमंत्रण देता है, बांधी हुई मृत्युकी-आयुष्यकर्मकी मर्यादाको तोड देता है। काम शास्त्रादिकमें कामीजनकी दश दशाएँ "बताई हैं, उसमें भी अंतमें मृत्यु ही लिखी गई है। इस तरह किसी युवतीको किसी युवानके प्रति राग हो गया। इस देशकी नारी जातिके लिए युवानको पाना यह तो अति अशक्य वावत होती है। फिर वह कामविह्वल नारी कामानिमें जलती हुई मृत्युके किनारे पर पहुँचती है / इस तरह दोनों दृष्टांत घटा लेना। 496. चिंतइ दुट्ठ मिच्छइ, दीहं निससह तह जरे दाहे / भत्त-अरोयण-मुर्छा, उम्माय-नयाणई मरणं // 1 // प्रथम रागवाले व्यक्तिके लिए सतत चिंता-ध्यान, फिर रागीको देखनेकी इच्छा, उसके न मिलने पर दीर्घ निःश्वास / फिर तनमनके इस श्रमके कारण बुखार-तापका प्रारंभ होता है, फिर जलन होती है, इससे जठराग्नि मंद पडनेसे भोजन पर अरुचि होती है / खाना नहीं भाता, अशक्ति आती है इससे हीस्टीरीया-चक्कर, मूर्छा जनमते हैं, फिर उन्माद होता है, शरीर धीरे धीरे घिस जानेसे अन्तमें मृत्युकी शरण हो जाता है।