________________ * सिद्ध गति विषयक देशव परिशिष्ट . इस सुखकी अनिर्वचनीय अपूर्वमधुरताको शानसे जानने पर भी वे-जिस तरह मूंगा आदमी गुड आदि मधुर पदार्थकी मिठासको नहीं कह सकता उसी तरह नहीं कह सकते। जैसे कोई ग्रामीण जन, राजवभवके सुखका उपभोग करनेके बाद अपने गाँवमें जाए और भोगा हुआ सुख कैसा था ? ऐसा किसीके पूछने पर गाँवमें प्रस्तुत सुखकी उपमा दी जा सके वैसी वस्तु के अभावमें कहनेकी इच्छा होने पर भी उदाहरण देकर भी समझाया न जा सके ऐसा इस सुखके बारे में है। सिद्ध जैसा सुख दूसरे किसी स्थान पर है नहीं, अतः फिर किसकी उपमा दी जा सके / प्रश्न-मोक्षमें कंचन, कामिनी, वैभवविलास, खानापीना आदिका कुछ भी सुख नहीं है, तो फिर वहाँका सुख अनंता कहा जाए तथा उस सुखको असाधारण विशेषणोंसे अलंकृत किया जाए, तो यह कथन बराबर होगा क्या ? उत्तर-हाँ, शानियोंका कथन संपूर्ण सच है। संसारके पौद्गलिक-मायावी सुख तो क्षणिक, दुःखमिश्रित तथा नश्वर है। साथ ही सुख तो कर्मोदय जन्य है / कर्मके उदयसे भूख लगती है, काम-भोगोंकी इच्छा होती है और अंतमें उसका उपभोग होता है। लेकिन जिसके ये कर्म ही क्षीण हो गये हों उसे संसारके कामभोगों में क्या आनंद आनेवाला था ? अर्थात् कुछ भी नहीं / संसारके तमाम पदार्थो स्त्री-पुत्र, धन, आवास, अन्न यह सब कब तक मीठा लगता है ? जब तक वे अनुकूल रहे, सुखके कारणभूत रहे तब तक, लेकिन जब वे दुःखोंके कारणभूत बन जाए तब वे सुख ही कटु लगते हैं। तब हुआ क्या कि इन्द्रियजन्य पौद्गलिक भाव के सुख सच्चे सुख ही नहीं है। परंतु आत्मामेंसे उत्पन्न हुआ सम्यग् ज्ञानादि रत्नत्रयीजन्य सुख ही सच्चा सुख है। पौद्गलिक सुख पर पदार्थजन्य है इसीलिए वह स्वाधीन सुख नहीं है। आत्मिक सुख स्वजन्य है, अत: अंतरके आनंदमेसे उत्पन्न होनेवाला है अतः स्वाधीन सुख है, सिद्धात्माओंको स्वज्ञानसे देखने में, स्वदर्शनसे जानने में, स्वचारित्रसे स्वगुणमें रमनेमें जैसा अनंत आनंद-सुख होता है वैसा दूसरे किसीको नहीं होता। यहाँ योगियों को या ज्ञानपूर्वक त्यागी जीवन जीनेवालों को कभी कभी आनंदकी अद्भुत लहरियाँ आ जाती है, उस समय उन्हें समस्त दुनियाके सुखों बिलकुल फीके, निस्तेज लगते है। सांसारिक सुख खुजली जैसे है जिसे खुजली हो वही खुजलाता है, उसे ही खुजलानेका सुख मिलता है। लेकिन जिसे वह दर्द ही नहीं उसे खुजली जन्य सुख क्या होता है ? बिलकुल नहीं। छोटा बालक रूपयेका मूल्य समझता नहीं है अतः लेनेका इन्कार करके पतासा ही पसंद करता है ऐसा ही मुक्ति सुख के लिए है। भोग-विलासमें मोहांध बने हुए को पतासे जैसे संसारके सुखों का ही मूल्य होता है। परंतु अमूल्य मुक्ति सुखका मूल्य नहीं होता। मुक्तिका सुख कैसा है? उस विषयक उदाहरण मनुष्य और देवों को जो सुख नहीं है, वह सुख सिद्धात्माओंके है। तीनों कालमें उत्पन्न हुआ अनुत्तर विमानवासी देवोंसे भूतकालमें भोगा हुआ, वर्तमान में भोगनेका और भविष्यमें भोगा जानेवाला- इन तीनों कालके सुखको एकत्र करके अनंत वर्गसे वर्गित (अनन्ताबार वर्ग गुना) करें तो भी मोक्षसुखकी तुलना न पाई जा सके /