________________ * असांव्यवहारिक और सांव्यवहारिक अर्थात् क्या? . . 133 . प्रमाण हैं। और वे प्रदेश गिनतीमें असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणीके समय जितने हैं, क्योंकि कालसे भी क्षेत्रको अधिक सूक्ष्म गिना है। यह स्थिति केवल सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोदाश्रयी जाने और ओघसे सांव्यवहारिक निगोदकी [ सूक्ष्म-वादर विवक्षा रहित ] स्थिति पहले वताई गई है। बादर सांव्य० निगोदकी स्थिति अब बादर सांव्यवहारिक साधारण निगोद [ वनस्पति की कायस्थिति कालसे सत्तर कोटाकोटी सागरोपमकी है। अल्प स्थितिपनसे क्षेत्रकी स्थिति घटती नहीं है / बादर प्रत्येक वनस्पतिकी कायस्थिति 70 कोटानुकोटी सागरोपमकी है। यहाँ मी क्षेत्रगणना नहीं है। बादर वनस्पतिकी अर्थात् बादर प्रत्येक अथवा बादर साधारण वनस्पतिके भेदके बिना दोनोंकी एकत्र अर्थात् केवल बादर वनस्पतिकी कायस्थिति सोचें तो कालसे अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी तथा क्षेत्रसे ढाई पुद्गलपरावर्त जितनी बढ जाए, क्योंकि बादर प्रत्येकसे बादर साधारणमें, बादर साधारणसे बादर प्रत्येकमें इस तरह बारबार जाने आनेसे अढाई पुद्गल परावर्त तक बादर वनस्पतिमें घूमे, बादमें स्थानांतर हो। सबकी ओघसे कायस्थिति. समग्र एकेन्द्रियपनकी जातिके रूपमें ओघसे कायस्थिति कालसे अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, क्षेत्रसे असंख्य पुद्गलपरावर्त जितनी अथवा आवलिकाके असंख्य भागके समय जितनी, सूक्ष्म पृथ्वीकायादिक चारकी ओघसे भी असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालप्रमाण, बादर पृथ्व्यादिक चारको ओघसे 70 कोटानुकोटी साग०, बादर प्रत्येककी 70 को० को० साग० की, बादर साधारण निगोदकी भी ओघसे 70 कोटानुकोटी साग० की, सूक्ष्म निगोदमें अनादिअनंत स्थितिवाले असांव्यवहारिक निगोदकी अनंता तथा अनन्त पुद्गलपरावर्त तथा अनादिसान्त स्थितिवाले असांव्यवहारिक निगोदकी कायस्थिति अनंती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी मी आखिरमें मर्यादित तो सही और सांव्यवहारिक सादिसान्त स्थितिवाले सूक्ष्म निगोदोंकी मसंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी अथवा असंख्य पुद्गलपरावर्त प्रमाण जानें, और सांव्यवहारिक केवल निगोदकी अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी प्रमाण जाने / सबकी जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्तकी है जो आगे कही जाएगी।