________________ * 170 . .श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . - विशेषार्थ-सचित्तयोनि अर्थात् जीवके प्रदेशोंके साथ एक हो गए जीवंत आत्माके शरीरका जो भाग, जिसमें जंतु उत्पन्न हों तब वह सचित्त योनिप्रदेश गिना जाता है / अथवा जीवप्रदेशके साथ संबंध रखनेवाली योनि वह सचित्तयोनि / अचित्तयोनि-जीवप्रदेशसे सर्वथा रहित सूखे काष्ठ जैसी अथवा जीवप्रदेशके साथ संबंध न रखती योनि वह / प्रश्न यहाँ किसीको शंका हो कि तीनों लोक सूक्ष्म जंतुओंसे खचाखच भरा है, तो फिर अचित्तयोनि [ अजीव ] पन कैसे संभवित हो ? साथ ही अचित्तयोनि कदाचित् सचित्तत्व प्राप्त करे या नहीं ? उत्तर-अचित्तयोनि तथाविध स्वभावसे सूखे काष्ठ जैसी होनेसे ही सूक्ष्म जन्तु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी, अचित्तयोनिके उपपातस्थानके पुद्गलो, उन सूक्ष्म जीवप्रदेशोंसे अन्योन्य संबंधवाले नहीं होते, अतः अचित्तयोनि को कभी भी सचित्तपन नहीं होता। मिश्रयोनि- [सचित्ताचित्त ] किस प्रकार हो ? –सचित्त और अचित्त पुदगलों के संबंधवाली होती योनि वह / अतः मनुष्यको तिर्यचकी योनिमें शुक्र [ वीर्य ] तथा शोणित-रुधिर पुद्गल रहे होते हैं। उनमें से जो पुद्गल आत्माके साथ जुड़े हुए हैं वे सचित्त और जो नहीं जुड़े हुए हैं वे अचित्त [ क्योंकि आत्मा सजीव है ] / इस सचित्ताचित्तका संबंध जिसमें होता हो वैसी योनिको मिश्रयोनि कही जाती है / / - वह इस तरह-स्त्रियोंके शरीरमें, नाभिके नीचे विकस्वर पुष्पोंकी मालाके जैसी लगती, दाई तथा बायीं दोनों बाजू पर दो नसें रही हैं। ये दोनों नसें जहाँ जुडती हैं वहीं, उन नसोंके साथ जुडी अधोमुखी अमरुद अथवा तो कमलके गोटेके आकार जैसी योनि पदार्थकी रचना है। यहाँ आभ्यन्तर योनिकी बात होनेसे योनि अर्थात् गर्भाशय समझना, कि जहाँ गर्भकी उत्पत्ति होती है / इस योनि या गर्भाशयके बाहरके भागमें आम्रमंजरी जो मांसकी बनी मंजरीयाँ होती हैं। ये मंजरीयाँ रुधिर झरनेके स्वभाववाली है, अतः सामान्यतः (प्रायः) हर मास रुधिरको झरती हैं। (तब स्त्री रजस्वला, अडचनवाली या एम. सी. वाली कहलाती है / ) इस रुधिरके कतिपय बिन्दु-कण अमरुदाकार गर्भाशयमें नसोंद्वारा दाखिल हो जाते हैं और वहाँ टिके रहते हैं। तब पुरुषके साथ सम्बन्ध होनेसे पुरुषवीर्यके अमुक विन्दुएँ भी उसी गर्भाशय के स्थानमें प्रवेश करने पर वहाँ स्त्री-रज या रुधिर और पुरुष वीर्यका मिश्रण हो जाता है। इन शुक्र मिश्रित शोणित पुद्गलोंमें से जिन पुद्गलों को योनिने आत्मसात् किये हों वे पुद्गल ..