________________ * अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय आयुवाला जीवोंकी समज . * 1950 . जाता है, अर्थात् जितने वर्षका बंधा हो उतने वर्ष तक पूरा पूरा भोगकर सर्वायुष्यदलिकोंका क्षय करके बादमें ही मृत्यु पाता है। ___ इसमें 48 अपवर्तनको कोई स्थान नहीं है। इस आयुष्यका भोगकाल, बंधकालकी स्थितिमें हास नहीं करता। ___ यहाँ पाठकोंको ख्यालमें रखना कि शुभ कर्मके अच्छे परिणामका तीव्र आनंद होता है और वैसे कर्मका अनपवर्तनीय बंध पडे तो उसकी हरकत नहीं लेकिन अशुभ कर्म करते उसके तीव्र परिणाम, खोटी मस्ती और उच्छृखल आनंद आ गया तो उस कर्मका गाढ बंध पडेगा और उसके उदयके समय जीवको उसके तीव्र कटु फल अवश्य भोगने पडेंगे, जो रोने पर भी नहीं छूटेंगे, अतः अशुभ, पाप, हिंसा, क्रोध, मान, माया, लोभ और विषय वासनाओंकी अनिष्ट-विकारी प्रवृत्तियाँ करनी पडती हों तो भी उस समय उनमें तल्लीन नहीं बनना, संसारी प्रवृत्तियोंका सर्व व्यवहार अनासक्तपनसे करना / अपवर्तनमें तीव्र आरंभ समारंभकी प्रवृत्तिसे किसी अशुभ गतिका आयुष्य निकाचितपनसे बंध गया, और फिर आप चाहे वैसी निष्पाप प्रवृत्ति करें, सुकृतके कार्यों करें लेकिन निकाचित बना आयुष्य एक बार तो दुर्गतिमें घसीदे बिना नहीं रहता जिसके लिए श्रेणिक आदिके उदाहरण प्रसिद्ध हैं। श्रेणिकको गर्भवती मृगीके शिकारकी क्रूर हिंसक प्रवृत्ति करनेसे जिस समय आयु. प्यका बंधकाल आया तव नरकायुष्यका निकाचित बंध गिरा दिया और उसके बाद खुद तरण-तारणहार, भुवनगुरु, अहिंसा और क्षमामूर्ति भगवान महावीरका महापुण्ययोग हुआ, जिसके कारण तीर्थकर नामकर्म भी बांधा, लेकिन मरकर उसे नरकमें तो जाना ही पड़ा। हमारा भी बन्धकाल कब आ जाएगा उस क्षणका ज्ञान नहीं है, अतः सद्गतिके अभिलाषीको हमेशा शुभभाव, यावत् शुद्धभावमें तन्मय रहना / [334] . 487. यहाँ एक आपवादिक बाबत शास्त्रमें नजर आती है वह भी कहनी चाहिए / विशेषार्थमें कहा कि अनपवर्तनीय आयुष्य हो उसका कभी हास नहीं होता / लेकिन एक उल्लेख ऐसा मिलता है कि “अकर्मभूमिके तीन पल्योपमायुषी युगलिक तिर्यच-मनुष्य अंतर्मुहूर्तकाल प्रमाण आयुष्यको छोडकर शेष अन्तर्मु० न्यून तीन पल्योपम आयुष्यकी अपवर्तना-हास करते हैं / " जिससे शंका हो कि इस तरह होनेसे तो सिद्धान्तभंग होता है। अगर अनपवर्तन हो तो उस आयुष्यको निरुपक्रम या निकाचित कैसे कहा जाए? निकाचित हो तो वैसे बनना ही न चाहिए। इसका समाधान संक्षिप्तमें यही कि आयुष्यके निकाचित बंध योग्य अध्यवसायमें प्रत्येक स्थितिके अनुक्रमसे असंख्यगुण असंख्यगुना है / इससे यह आयुष्य एक समान ही नहीं लेकिन असंख्य भेदवाला है अतः कोई कोई आयुष्य अपवर्तनाको भी पा सकता है।