________________ * तिर्यच जीवोंकी संक्षिप्त पहचान * / 125 आदि। ये. सब रोयेके पंखवाले 'रोमज' पक्षी होनेके कारण कहे जाते हैं और चर्मज पक्षी-चमगादड आदि चमडेके पंखवाले होनेसे चर्मज पक्षी कहलाते हैं। साथ ही मनुष्यलोकके बाहर बंद तथा विस्तृत पंखवाले समुद्गक तथा वितत पक्षी इस तरह चार प्रकारके पक्षी हैं। ये तिर्यक् पंचेन्द्रियवर्ती जलचर, स्थलचर तथा खेचर सर्व समूच्छिम और गर्भज इस प्रकार दो भेदवाले हैं। इस तरह एकेन्द्रिय जीवोंके 22 भेद, विकलेन्द्रियके पर्याप्ता अपर्याप्ता होकर 6 भेद, कुल 28 हुए। तिर्यक् पंचेन्द्रियमें जलचरका एक स्थलचर-चतुष्पद, उरपरिसर्प और भूजपरिसर्प इस तरह 3 भेद, और एक खेचर, इस प्रकार कुल पांच भेद (इनमें सूक्ष्मबादरत्व नहीं होता) ये संमूच्छिम-गर्भज दो भेदमें गिननेसे 10 भेद हुए। इससे पर्याप्ता अपर्याप्ता होकर 20 भेद तिर्यक्पंचेन्द्रिय जीवोंके जाने। पूर्वके 28 + 20 जोडनेसे कुल 48 भेद तिर्यक् जीपोंके जाने / वाचकोके लिये एक ज्ञातव्य बात / " यह संग्रहणी या संग्रहणीरत्न ग्रन्थ जैनधर्मका एक आदरणीय, विचारणीय, माननीय और अत्युपयोगी ग्रन्थ है / इस ग्रन्थमें ऊर्ध्व-आकाशके अन्तसे लेकर अधो आकाशके अन्त तक (प्रायः) दृश्य-अदृश्य जो विश्व है उसका वर्णन और इस विश्व में ऊर्ध्वाकाशके अन्त भागमें जो सिद्धशिला है जिस स्थानको मोक्ष कहा जाता है / वहाँसे लेकर देवलोक, ज्योतिषलोक, मनुष्यलोक और उसके बाद निम्न निम्न भागमें रही हुई सात नरक पृथ्वियाँ और उनमें रहे हुए पकेन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय तकके सूक्ष्म और स्थूल जीवोंका विविध प्रकारसे वर्णन किया गया है / जैनधर्मकी कतिपय महत्त्वपूर्ण जानने योग्य बाबतोंका उसमें संग्रह किया गया है। इस ग्रन्थको पढनेसे तीनों लोक, भूगोल, खगोल आदि विषयोंकी जानकारी उपलब्ध होती है / ___ यह ग्रन्थ हिन्दी भाषी जनता के लिए, जैन-अजेन जिज्ञासुओंकी ज्ञानवृद्धिके लिए आनंद और संतोष हो इसी कारणसे हमने अनेक उपयोगी चित्रोंके साथ छपवाया है।