________________ * चक्रवर्ती के चौदह रत्न और उसका वर्णन . की चिंता करनेवाला-पूरा करनेवाला, सुलक्षण, रूपवंत, दानशूर, स्वामिभक्त, पवित्रादि गुणवाला होता है / साथ ही दिगविजयादि प्रसंग पर जरुरत होने पर अनेक प्रकार के धान्य तथा शाक को चर्मरत्न पर सुबह बोकर शाम को उगानेवाला होता है, [ चर्मरत्न इस धान्योत्पत्ति के योग्य क्षेत्रतुल्य काम देनेवाला और गृहपति का कृषिकार की तरह समझना ] जिससे सैन्य का सुखपूर्वक निर्वाह होता है / / 13. वार्धकी रत्न-अर्थात् महान् स्थपति, शिल्पकार, समग्र बढई में श्रेष्ठ, चक्री के महलों, प्रासादों गृहों तथा सैन्य के लिए निवासस्थानों, गाँव, नगरोंको तैयार कर देनेवाला तथा पौधशाला को एक ही मुहूर्त में वास्तुशास्त्र के नियम अनुसार, यथार्थ रूपमें व्यवस्थित बनानेवाला होता है। बांधकाम विभाग का अधिष्ठाता यह पुरुष होता है / साथ ही जब चक्री तमिस्रा-खंड प्रपात गुफामें जाए तब समग्र सैन्य को सुखरूप उतरने के लिए उन्ममा तथा निमग्ना नामकी महानदियों के पर महान् सेतु-पुलों को बांधनेवाला / 14. स्त्रीरत्न—वह महान् विद्याधरों तथा अन्य नृपतियोंके उत्तम गृह में उत्पन्न होता है / उसमें छः खंडों की नारियोंके एकत्रित तेजपुंज जितना तेज, दिव्यरूपादिक होता है / सामुद्रिकशास्त्र में कहे संपूर्ण स्त्रीलक्षण युक्त, मानोन्मान प्रमाणयुक्त, महादेदीप्यमान और सर्वांगसुंदर होता है / सदा अवस्थित यौवनवाला, रोम नख न बढे ऐसा, भोक्ता के बल की वृद्धि करनेवाला, देवांगना जैसा, स्पर्श करने पर सर्व रोगोंको हरनेवाला और कामसुख के धामसमान महाअद्भुत होता है / इस स्त्री ( रत्न ) को चक्री मूल ' शरीरसे भोगे तो कदापि गर्भोत्पत्ति नहीं होती / गर्भाशय की गरमी के कारण गर्भ ही नहीं रह सकता / गरमी के उदाहरण में-कुरुमती नाम की स्त्रीरत्न का स्पर्श होते ही लोहे का पुतला भी द्रवीभूत हो गया था यह उदाहरण प्रसिद्ध है / इति पंचेन्द्रिय रत्नानि || इस तरह 8-11-12-13-14 की संख्यावाले सेनापति आदि पांच मनुष्य रत्नो अपने अपने नगर में उत्पन्न होते हैं और वे स्वकालिक उचित देह प्रमाणवाले होते हैं। - 394. पौष धत्ते इति पौषधः-जो धर्मकी पुष्टि करे वैसी क्रिया / ‘पौषध चार प्रकारका होता है / तप करना, शरीर सत्कार त्याग, ब्रह्मचर्यपालन और पापमय आचरणका त्याग, संक्षिप्तमें जिसमें साधुजीवन के स्वादका अनुभव हो वह / जैनो पर्वके दिनोंमें धर्मगुरु के पास जाकर इसकी आराधना करते हैं / 395. यह कार्य वार्धकीरत्न का है ऐसा आवश्यकचूर्णि बताता है / .