________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * अवध्य और भयमुक्त बनता है / मतांतरसे हाथ पर बांधने से सदा तरुणावस्था रहती है, और उसके नख-केश की वृद्धि भी नहीं होती। इति एकेन्द्रिय रत्नानि / / ___ इस तरह सात एकेन्द्रिय रत्नोंकी व्याख्या की / अब सात पंचेन्द्रिय रत्नोंके बारेमें कहते हैं / 8. पुरोहितरत्न-जरूरत पड़ने पर चक्री को शान्तिक-पौष्टिक आदि विविध कर्मानुष्ठान कराकर सफलता देनेवाले, महापवित्र, संपूर्ण गुणोपेत, चौदह विद्या में पारंगत, . प्रवेश निर्गमन में मंगलकार्य करानेवाला, कवि-कुशल पुरोहित का काम करनेवाला / 9. गजरत्न-यह गज महान् वेगवाला, सात अंगोंसे प्रतिष्ठित ऐरावण गज जैसा पवित्र, सुलक्षण, महापराक्रमी, अजेय ऐसे किल्लादिक को भी तोड़ डालनेवाला होता है / चक्री इस हस्ति पर बैठकर सदा विजययात्रा पाता है। यह रत्न देवाधिष्ठित होता है / 10. अश्वरत्न–चक्री का यह घोडा महान् वेगवाला, स्वभावसे ही सुंदर, आवर्तादि लक्षणवाला, सदा यौवनवाला, स्तब्धकर्णवाला, लंबाईमें 108 अंगुल लंबा, और 80 अंगुल ऊँचा, कुचेष्टारहित, अल्पक्रोधी, शास्त्रोक्त सर्व लक्षणयुक्त, किसी भी जलाशय, अग्नि या पहाडोंको बिना परिश्रम उल्लंघन करनेवाला-महान् वेगवाला अजेय होता है / 9-10 यह दोनों तिर्यचरत्नो वैताढ्यपर्वत की तलहटी में उत्पन्न होते हैं और छः खंडोंकी विजय यात्रा में पराजित हुआ व्यक्ति उस समय चक्रीको भेंट स्वरूप देते है। 11. सेनापति रत्न-यह पुरुष हस्त्यादि सर्वसेना का अग्रसर, चक्री का युद्ध मंत्री, यवनादिक अनेक भाषा-शास्त्र, तथा विविध लिपि-शिक्षा-नीति, युद्ध-युक्ति, चक्र, व्यूहादि विषयों का जानकार, समयज्ञ, विजय करने के क्षेत्र के जमीनादिक मार्ग का ज्ञाता, वफादार-परमस्वामिभक्त, तेजस्वी, प्रजाप्रिय, चारित्रवान, पवित्र गुणोंसे सुलक्षण होता है, और दिग्विजय में चक्री साथ में ही होता है / चक्री की आज्ञा होते ही चक्री की सहायके बिना ही चर्मरत्नसे गंगा-सिंधु के अपर तट पर जाकर, महाबलिष्ठ म्लेच्छ राजाओं के साथ, भीषण-खूखार युद्ध करके सर्वत्र विजय पाकर चक्री का शासन स्थापित करता है / 12. गृह [गाथा ] पतिरत्न-अन्नादिक के कोष्ठागारका अधिपति, चक्रीके महल-गृह के तथा सैन्य के भोजन, वस्त्र, फलफूल जलादिक आवश्यक तमाम वस्तुओं