________________ *76. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . समाधान-अगर ये शंका व्याजबी है लेकिन दोनों में भिन्नता यह हैं किसंमूर्छन जन्म में औदारिक पुद्गलों का तथा उपपात में वैक्रिय पुद्गलों का ग्रहण है। अन्यथा वास्तव में तो तीन प्रकार के बदले एक संमूर्छन प्रकार मानकर अवशिष्ट दो . संमूर्च्छन के ही विशिष्ट स्वरूप मानें तो अनुचित नहीं है / संमृच्छिम जीव कौन कौन से ? ___एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय - ये सारे जीव संमूच्छिम ही होते हैं / पंचेन्द्रिय के चार भेदों में से मनुष्य और तिर्यचों में भी संमूच्छिम पंचेन्द्रियो हैं / संमूच्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? ____ यहाँ पर चालू गाथा में संमू च्छिम तथा गर्भज मनुष्य के विषय में विचार चलता होने से संमूच्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में समझना कि - वे अढाईद्वीप-समुद्र में वर्णित 56 अन्तरर्दीप, 15 कर्मभूमि और 30 अकर्मभूमि के 101 क्षेत्रों में वर्तित गर्भज मनुष्य के ही विष्टा, मूत्र (पेशाव) लेप्म, कफ, वमन, पित्त, वीर्य, रुधिर, मृतकलेवर, स्त्री-पुरुष के मिथुन संयोग में, शहर की मोहरी-गटरों में तथा तमाम प्रकार के उच्छिष्ट, अशुचि और अपवित्र-गंदे स्थानों में औदारिक पुद्गल के साथ तथाप्रकार के जल-वायु का संयोग होने से ही शीघ्र, अल्प अथवा सैकडों से लेकर लाखों, करोडों तथा अरबों यावत् असंख्य तथा अनंत प्रमाण में उत्पन्न हो जाते हैं। क्षण के पहले जहाँ कुछ भी न था वहाँ हजारों मक्खियाँ, मच्छर, खटमल, तिड्ड तथा अन्य जंतु एकाएक उभर जाते हैं, ये संमूच्छिम जीव होने के कारण ही बनता है / कुल चौदह अशुचिस्थानों में संमृच्छिम मनुष्यों के जन्ममरण सतत होते ही रहते हैं / ये जीव असंज्ञी (मन रहित ) मिथ्यादृष्टि और अपर्याप्त ही होते हैं / गर्भज मनुष्यों के आश्रित उत्पन्न होने के कारण उनका उत्पत्ति क्षेत्र अढाईद्वीप समुद्र अर्थात् संपूर्ण मनुष्य क्षेत्र है, जो अगाऊ कहा जा चूका है / ____ गर्भज मनुष्यो-'गर्भे जायन्ते इति गर्भजाः' गर्भ में जो उत्पन्न हों वे गर्भज कहे जाते है। गर्भज मनुष्य मी, 15 कर्मभूमि, 30 अकर्मभूमि और 56 अन्तर्वीप में उत्पन्न होते हैं। वो अपर्याप्त-पर्याप्त दोनों प्रकार के होने से उनके कुल 202 भेदो हैं / 385. अपरे वर्णयन्ति, सम्मूर्च्छनमेवैकं सामान्यतो जन्म / तदि गर्भोपातताभ्यां विशेष्यत इति // [तत्त्वार्थ पृ. वृत्ति