________________ किन देवोंके कितना अवधिज्ञान होता है ? ] गाथा-२०० [385 उत्सर्पिणीमें चमरेन्द्रका सौधर्मकल्पमें जाना प्रसिद्ध है) तिरछे तथा नीचेके अवधिक्षेत्र बहुत अल्प होते हैं। वैमानिक निकायके देवोंका अवधिक्षेत्र अधिक नीचा होता है (कल्याणकादि प्रसंग पर अवधिसे तीर्थंकरका जन्मादिक देख आना प्रसिद्ध है) यह तिरछे, अल्प और ऊँचाईमें ( स्वविमान धजा पर्यंत होनेसे ) उससे भी अल्प होता है। साथ ही नारकी तथा ज्योतिषी देवोंका अवधिक्षेत्र तिरछा अधिक और ऊँचा तथा नीचा अल्प होता है। ____ मनुष्य और तिर्यचका क्षेत्र अनेक प्रकारका अर्थात् उर्ध्व, अधो, तिर्यक् छोटा-बड़ा विविध संस्थानाकार रूप विभिन्न रीतिसे होता है। [200 ] // चारों गतिके बारेमें अवधिक्षेत्रका आकार और दिशा आश्रयी अल्पबहुत्व व्यवस्था यन्त्र // ऊर्ध्व अल्प तिर्यगजाति नाम | अवधिक्षेत्राकार बहुत्व | अधोमान | मान अल्प भवनपतिका पल्याकार ऊर्ध्वविशेष अल्प व्यन्तरका पडहाकार ज्योतिषीका झाल (झालर) अधिक के आकारका बारह देवलोकका मृदंगाकार अधो अल्प अधिक नौ प्रैवेयकका | पुष्पचंगेरीके आकारका अनुत्तरका यवनालकाकार नारकीका अल्प अधिक मनुष्यका विविधाकार अनेकविध अनेकविध | अनेकविध -तियचका // इति देवगत्यधिकारः // तिरौंदाकार