________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * संभवित है ? क्योंकि ऊपर के कथन के अनुसार सातवीं नरक में वर्तित नरक जीवों के सदाकाल कृष्णलेश्या ही होती हैं और सम्यक्त्व की प्राप्ति तो तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या हो तो ही संभवित हो सकती है। साथ ही देवों में संगमाधिक अधम देवों के सदाकाल तेजोलेश्या होने पर भी जगज्जंतु के उद्धारक परमात्मा महावीरदेव के. समान संसारोदधिनिर्यामक को छः छः महीने तक भयंकर उपसर्ग करने के फलरूप कृष्णलेश्या के परिणाम हुए वह भी किस तरह संभवित हो ? कृष्णलेश्या के सिवाय परमात्माको उपद्रव-उपसर्ग करने के परिणाम होते ही नहीं। समाधान-ऊपर की शंका वास्तविक है और उस शंका के समाधान के लिए ही यह 'सुरनारयाण ताओ' इत्यादि पदवाली गाथा को रचने की ग्रन्थकार महर्षि को जरूरत्त दीखी है। कहने का आशय यह है कि-लेश्या दो प्रकार की है। एक द्रव्यलेश्या और दूसरी भावलेश्या। इनमें देवों के तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या तथा नारकजीवों के कापोत नील और कृष्णलेश्या जो अवस्थितपन से रहनेवाली कही हैं वे द्रव्यलेश्या की अपेक्षासे कही हैं, परंतु भावलेश्या की अपेक्षा से नहीं। भावलेश्या की अपेक्षा से तो देवों के और नारकों के उन अवस्थित द्रव्यलेश्याओं के साथ छहों भावलेश्याएँ होसकती हैं। शंका-देव, नारकों को भी मनुष्य-तिर्यचों की तरह भावलेश्याएँ छहों होने का बताया जाता है। इस तरह भावलेश्या में समानता कही इस प्रकार तो मनुष्य-तिर्यंचोंकी द्रव्यलेश्या के समय की तरह, उनकी द्रव्यलेश्या का काल अन्तर्मुहूर्त क्यों नहीं ? समाधान-मनुष्य, तिर्यचों के द्रव्यलेश्या के परिणाम तो अन्य लेश्या परिणाम उत्पन्न होने पर, पूर्वलेश्या परिणाम का उसमें संपूर्ण रूपान्तर हो जाता है, वैसा देव, नारक में बनता नहीं है। अतः उसे अन्तर्मुहूर्त का काल कहाँ से हो ही सके ! उन्हें तो स्वभाववर्ती लेश्या में अन्य भावलेश्या का परिणाम आ जाए तो वह मात्र स्पष्ट अस्पष्ट प्रतिविम्बत्व को ही प्राप्त करता है। और वह भी ज्यादा समय तक टिकता नहीं हैं। साथ ही जितना समय टिका हो उस समय तक अवस्थित लेश्या के मूल स्वरूप में कुछ परिवर्तन करता नहीं है, यही बात दृष्टांत से अधिक समझाते हैं। मनुष्यो, तिर्यचों के जिस समय जो लेश्याएँ होती हैं उस समय वैसे आत्मप्रयत्न से उस विद्यमान लेश्या के पुद्गलों को अन्य लेश्या के पुद्गलों (द्रव्यों) का संबंध होते ही विद्यमान लेश्या पलट जाती है, अर्थात् सफेद वस्त्र को लाल रंग का संबंध होते ही सफेद वस्त्र