________________ 362 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-१८२ // चतुनिकायमें श्वासोश्वास - आहार अन्तरमान यन्त्र // नाम 2 देवलोक | आयुष्यमान | श्वा० | मान 1 सौधर्ममें 2 सागरोपम | 2 पक्ष पर 2 ईशानमें 2 साधिक सा. | 2 . 3 सनत्कुमारमें, 7 सागरोपम ! 7 ,, 4 माहेन्द्र में |7 साधिक सा. 5 ब्रह्मकल्पमें 10 सागरोपम 6 लांतकमें 14 सागरोपम 14 7 शुक्रकल्पमें 17 सागरोपम 8 सहस्रारमें 18 सागरोपम 9 आनतमें 19 सागरोपम 10 प्राणतमें 20 सागरोपम 11 आरणमें 21 सागरोपम 12 अच्युतमें 22 सागरोपम 1 सुदर्शन ग्रैवे. 23 सागरोपम 2 प्रतिबद्धमें 24 सागरोपम 3 मनोरममें 25 सागरोपम 4 सर्वतोभद्रमें 26 सागरोपम 5 सुविशालमें 27 सागरोपम 6 सुमनसमें 28 सागरोपम 7 सौमनसमें 29 सागरोपम 8 प्रीतिकरमें 30 सागरोपम 9 आदित्यमें 31 सागरोपम 1 विजयमें 33 सागरोपम 2 वैजयन्तमें 33 सागरोपम 3 जयन्तमें 33 सागरोपम 4 अपराजित में 33 सागरोपम 5 सर्वार्थसिद्ध में 33 सागरोपम 33 आहारमान / शेष निकायमें ___ श्वासो० आहारमान / वर्ष पर दस हजार सालकी जघन्य आयुवाले भवनपति व्यन्तरोंको एक अहोरात्रि पर आहारकी इच्छा होती है तथा सात स्तोक पर एकबार श्वासोश्वास भी करते हैं। - दस हजार सालसे भी आगे समयादिककी वृद्धिसे अधिक बढ़ते-बढ़ते यावत् एक पल्योपमका आयुष्य हो उसे दिन पृथक्त्व पर आहार और मुहूर्त पृथक्त्वपर उच्छवास ग्रहण होता है। इससे आगे बढ़ते हुए आयुष्यवालोंके लिए दिन पृथक्त्व और मुहूर्त पृथक्त्वमें क्रमशः धीरे धीरे वृद्धि करते जाना / यह वृद्धि भी इस तरह करें कि एक सागरोपमपर पहुंचते ही एक हजार वर्षपर आहार इच्छा तथा एक पक्षपर उच्छ्वास ग्रहणका कालमान आ रहे / एक सागरोपमसे भी आगेकी गिनतीके लिए कोष्टकमें बताया गया ही है। ww