________________ 318 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 144-147. ___भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक इन चारों निकायके देवोंका सामान्यतः (समुच्चय ) उपपातविरह उत्कृष्टसे बारह मुहूर्त्तका होता है, ये बारह मुहूर्त व्यतीत होते अन्य कोई जीव देवगतिमें अवश्य उत्पन्न होता ही है। [144] ___ अवतरण-पूर्व समुच्चयमें सामान्य रूपसे उपपात विरह काल कहा / अब तीन गाथाओंसे प्रत्येक निकायाश्रयी स्पष्ट रीतिसे बताते है। भवणवणजोइसोह-म्मीसाणेसु मुहुत्त चउवीसं / तो नव दिण वीस मुहू, बारस दिण दस मुहुत्ता य / / 145 // बावीस सड्ढ दियहा, पणयाल असीइ दिणसयं तत्तो। संखिज्जा दुसु मासा, दुसु वासा तिसु तिगेसु कमा / / 146 / / . वासाण सया सहस्सा, लक्खा तह चउसु विजयमाईसु / पलियाऽसंखभागो, सबढे संखभागो य // 147 / / गाथार्थ-विशेषार्थवत् / // 145-147 // विशेषार्थ- भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक निकायके सौधर्म तथा ईशान इन दोनों कल्पमें उपपातविरहकाल उत्कृष्टतासे चौबीस मुहूर्त्तका होता है, उसके बाद उक्त निकाय स्थानमें एक अथवा अनेक देव अवश्य उत्पन्न होते है। उनके बाद सनत्कुमार कल्पमें नौ दिन और ऊपर बीस मुहूर्त्तका विरहकाल, माहेन्द्र कल्पमें बारह दिन ऊपर दस मुहूर्त, ब्रह्म कल्पमें साढ़े बाईस दिन, लांतक कल्पमें पैंतालीस दिन, शुक्र कल्पमें अस्सी दिन, सहस्रार कल्पमें सौ दिन, 24 आनत-प्राणतमें संख्याता मासका, 28 आरण-अच्युतमें संख्याता वर्षका विरहकाल होता है। ___ नवौवेयककी पहलीत्रिकमें उत्कृष्ट विरहकाल संख्याता वर्षशत होता है, [ परन्तु उसे सहस्र वर्षके भीतरका ही समझें, वरना हम सहस्र वर्ष ऐसा ही विधान करते। ] मध्यमत्रिकमें संख्याता सहस्र वर्ष ( लक्ष (लाख)से अर्वाक् ) और ऊपरितन ग्रैवेयकमें संख्याता लक्ष वर्षका ( कोटीसे (करोड़)से अर्वाक् ) विरह जानें / अनुत्तरकल्पमें-विजय, विजयवंत, जयंत और अपराजित इन चारों विमानोंके लिए (अद्धा) पल्योपमका असंख्यातवे भाग जितना विरहकाल पड़ता है और मध्यवर्ती सर्वोत्कृष्ट पाँचवे सर्वार्थसिद्ध विमानके लिए उत्कृष्ट विरहकाल पल्योपमके संख्यातवे भागका जाने / इस तरह -- उत्कृष्टसे उपपात विरहकाल'. दर्शाया। [ 145-147 ] // इति सुराणां चतुर्थमुपपातविरहकालद्वारं समाप्तम् // 296-297. परन्तु इतना विशेष समझे कि आनतसे प्राणतमें संख्याता मास कुछ अधिक रूपसे जानें / उसी तरह आरणसे अच्युतमें संख्याता वर्ष अधिक काल जानें /