________________ देवोंके प्रविचार-विषयसुख संबंधी विचारणा] गाथा 168[347 ही अनेक प्रकारसे चेष्टायुक्त उस देवीका सुन्दर, मनोवेधक, कामोद्वीपक मोहकरूप देखकर देवीके शरीरमें शुक्र संचय तथा कामलालसाकी तृप्तिका अनुभव करते हुए अत्यधिक सुखको प्राप्त करके वेदोपशान्तिको पाते हैं। महाशुक्र-सहस्रार कल्पके देव शब्दप्रविचारक होते हैं अर्थात् उन देवोंको विषयकी इच्छा होते ही पूर्वोक्त रीति अनुसार सुन्दर वैक्रिय रूप धारण करके इच्छित देवियों के पास आकर सबके मनको आनन्द देनेवाले अत्यन्त मोहक और कामोत्तेजक मधुर गीत एवं हास्य-विकारयुक्त वचन बोलते हैं। नूपुरकी कर्णप्रिय ध्वनि समान वाणी विलासके शब्दोंसे ये देव विषयसुखकी वासना तृप्ति अनुभवते हैं। इसी समय पर देवीके शरीरमें दिव्य प्रभावके कारण शुक्र संक्रमण 18 हो जाता है। आनत-प्राणत-आरण-अच्युत कल्पके देव मनःप्रविचारी अर्थात् मनसे चिंतन मात्रसे विषयसुखकी इच्छाको तृप्त करनेवाले हैं। सौधर्म-ईशान 3१४कल्पवर्ती अद्भुत शृङ्गारयुक्त वे देवियाँ स्व-स्वस्थानमें रहकर, अपने सुन्दर स्तनादि अवयवोंको ऊपर-नीचे हिलाती, अंगभंग करती. चेष्टाएँ दर्शाती. परम सन्तोषदायी अभिनयकला इत्यादि करती हैं तब उन देवियोंको अपने मनःचक्षुसे देखकर आनतादि प्रमुख देव तृप्त होकर परम वेदोपशान्ति पाते हैं / प्रश्न—जिस प्रकार देवोंको काम तृप्तिसे सन्तोष मिलता है, उस समय उन देवियोंको भी वैसा अनुभव मिलता है क्या ? ... उत्तर-जब देव अपनी कायासे सर्वाश रूपमें या अंश रूपमें रूपदर्शन या शब्दादि श्रवणसे विषयोंको भोगते हैं, तब देवियोंको भी वैसी ही तृप्ति मिलती है। कायासे तो स्पष्ट समझमें आता है परन्तु रूप-दर्शनादि सर्व प्रसंगपर देवियाँ देवोंके इन्हीं दिव्यरूप, कान्ति और प्रेम-स्नेहोत्कर्षसे कामातुर बनती है और उसी समय दिव्य प्रभावसे देवीकी योनिमें शुक्र पुद्गलका संक्रमण जरूर हो जाता है और इससे वे समकालपर अवश्य तृप्त बनती हैं। ये पुद्गल वैक्रिय होनेसे और वे वैक्रिय शरीरमें ही प्रवेश करते होनेसे गर्भाधानके हेतुरूप बनते नहीं हैं, परन्तु उस देवीके लिए तो ये पञ्चेन्द्रियका पोषकरूप होनेसे कान्तिवर्धक, मनोज्ञ, सुलभ और अभीष्ट बनते हैं। उसके बाद नौ ग्रैवेयक, अनुत्तरवासी देव अप्रविचारी अर्थात् अत्यंत मन्द पुरुष वेदके उदयवाले होनेसे तथा प्रशमसुखमें तल्लीन होनेसे उन्हें कायासे, स्पर्शनादिसे किसी भी रीतिसे यावत् मनसे भी स्त्री सुख 318. यह हकीकत एक महत्त्वका सूचन कर जाती है कि बिना स्पर्श करे दूरसे भी शुक्र पुद्गलोंका संक्रमण स्त्रीके शरीरमें हो सकता है। आयुर्वेद तथा आजका विज्ञान इस बातका अनुमोदन देता है। 319. क्योंकि क्षीणकामी अच्युतान्त देव देवियोंसे स्पर्श करते नहीं हैं, यह नियम देवी-सम्बन्धी ही समझे , परन्तु वे किसी पूर्वभवके स्नेहवाली मनुष्य स्त्रीके साथ कदाचित् कर्म-वैचित्र्यसे लिपट जा सकते हैं /