________________ विमानोंका विस्तार जाणनेका उपाय ] गाथा 123-126 [299 विक्खंभं आयामं, परिहिं अभितरं च बाहिरियं / जुगवं मिणति छमास, जाव न तहाबि ते पारं / / 124 / / गाथार्थ-विशेषार्थवत् / // 123-124 / / विशेषार्थ-उक्त चार गतिके नाममें चौथी 'वेगा' गतिको अन्य कोई आचार्य 'यवनान्तरी' नामसे संबोधित करते हैं। यहाँ इतना ध्यानमें रखनेका कि-जो चार गतियाँ कहने में आई, और 223580 ई आदि संख्या कहने में आई, उन्हें अनुक्रमसे प्रयुक्त करें अर्थात् एक कदममें 28350 ई योजन भूमि चलने में आवे तो वह वेग चंडा गतिका चलानेका कहा जाए, इस तरह शेष तीनों गतिके लिए समझना / अब पूर्व गाथामें कही गई चंडा गतिके 283580 यो ई भाग प्रमाणका कदम भरनेसे किसी एक देव विमानके 284 विस्तारको मापना शुरु करे, दूसरा देव चपला गति के 472633 यो० 30 प्रमाणके कदम द्वारा क्मिानके आयामका पार पानेको प्रयाण शुरु करे, तीसरा देव जयणा गतिके 661686 यो० 54 योजन प्रमाणके कदम द्वारा विमानके अभ्यन्तर परिधिको मापना शुरु करे, और चौथा देव वेगा गतिके 850740 यो०१० योजन प्रमाण कदम द्वारा विमानके बाह्य परिधिको पार पाने का प्रयाण शुरु करे। ये चारों देव चारों गतिसे चारों प्रकारके विमानोंके प्रमाणोंको एक ही दिवसको एक ही समय पर एक साथ मापने निकल पडे, निकलकर उक्त चारों गति के प्रमाण द्वारा चलते चलते 6 मास व्यतीत हो जाए, लेकिन उस विमानके चारों प्रकारके आयाम विष्कंभ आदि एक भी प्रकारके विमानप्रमाणान्तको भी कोई भी देव पा नहीं सकते / [123-124 ] अवतरण-किस तरह करनेसे, किस गतिको कितनी गुनी करनेसे विमानके विष्कंभ आदिका पार पावे ? पावंति विमाणाणं, केसिपि हु अहव तिगुणियाए * / कम चउगे पत्तेयं, चंडाई गईउ जोइज्जा // 125 / / तिगुणेण कप्प चउगे, पंचगुणेणं तु अट्ठसु मिणिज्जा / गेविज्जे सत्तगुणेण, नवगुणेऽणुत्तर चउक्के / / 126 / / गाथार्थ--प्रथमके चार देवलोकगत कुछ विमानोंका पार पानेके लिए चंडा-चवलाजयणा और वेगा, इस प्रत्येक गतिका पहले कहे गए प्रमाणसे प्रत्येक गतिको त्रिगुनी वेगवती करके चलने लगे तो पार पा सकती हैं / तत्पश्चात् पाँचवेंसे लेकर अच्युत देवलोक 284. चंडाए विक्खंभो चवलाए तइ य होई आयामो / अभितर जयणाए बाहिपरिहीय वेगाए // 1 // * तिगुणिआईए /