________________ वैमानिकोंकी विमानसंख्या ] गाथा 92-94 [ 273 विशेष इतना समझना कि-ऊपर कही संख्या वह पुष्पावकीर्ण और आवलिकागत दोनोंकी संयुक्त समझना / उन उन कल्पगत विमानोंके ऊपर उस उस निकायके इन्द्रका आधिपत्य होता है / प्रत्येक त्रायस्त्रिंशक और सामानिकका एक एक विमान होता है। त्रायस्त्रिंशक विमान कांचनप्रभरत्न तथा कंचनमय और सामानिक विमान शतकान्तरत्नमय और शतज्वलरत्नमय होते हैं / [92-93] // वैमानिक निकायमें प्रतिकल्पमें विमानसंख्या यन्त्र // नाम * वि. सं. | नाम * वि. सं. | नाम * वि. सं. सौधर्मकल्पमें 32 लाख | सहस्रारमें 6 हजार | सर्वभद्रमें / इशान, 28 ,, आनत सुविशालमें 107 सनत्कु. , 12 ,, प्राणत सुमनसमें माहेन्द्र , 8, वारण सौमनसमें ब्रह्म .. 4 अच्युत प्रियंकरमें लांतक ., 50 हजार सुदर्शन ग्रे० | आदित्यमें | शुक्र , . 40 हजार सुप्तभद्र , 1991 अनुत्तरमें मनोरम , कल्पमें 500 300 EEE ____ अवतरण- पहले वैमानिक निकायमें प्रत्येक कल्पमें कुल विमानसंख्या बताई, अब उस समग्र संख्याका कुल जोड़ वैमानिक निकायमें कितना प्राप्त होता है वह तथा इन्द्रक विमान संख्या बताते हैं चुलसीइ लक्ख सत्ता-णवइ सहस्सा विमाण तेवीसं / सव्वग्गमुइढलोगम्मि, इंदया बिसहि पयरेसु / / 94 / / गाथार्थ-वैमानिकमें [आवलीगत और पुष्पावकीर्ण दोनों विमानोंकी समग्र संख्याको एकत्र करें तब ] ८४९७०२३की विमानसंख्या ऊर्ध्वलोकमें प्राप्त होती है / प्रत्येक प्रतरमें इन्द्रक विमान होनेसे सर्व प्रतरोंके 62 इन्द्रक विमान होते हैं / // 94 // विशेषार्थ- सुगम है / सिर्फ इस निकायमें विमानसंख्या मर्यादित है / और इन्द्रक विमान समग्र प्रतरके मध्य भागमें हैं। [ 94 ] . बृ. सं. 35 .