________________ मनुष्यक्षेत्रमें चन्द्र-सूर्य पंक्तिका स्वरूप] गाथा 78-80 [ 165 - हजार योजनका और सूर्यसे सूर्यका अथवा चन्द्रसे चन्द्रका एक लाख योजनका अन्तर जो निर्णीत किया है उसकी व्यवस्था नहीं हो पाती / यह देखते (ध्यानमें लेते ) ग्रन्थकारके मतानुसार यह व्यवस्था किस प्रकारकी होगी? यह बहुश्रुतगम्य है / [78-79 ] इस संग्रहणी ग्रन्थकारके मतानुसार कतिपय द्वीप-समुद्रवर्ती चन्द्र-सूर्य-संख्यायन्त्रकम् // नाम / संख्या नाम / संख्या जंबूद्वीप |2 चन्द्र | 2 सूर्य | कालोदधि |42 चन्द्र | 42 सूर्य लवण समुद्र |4 , 4, | पुष्करवरद्वीप | 144 ,, | 144 ,, धातकीखंड | 12 ,, | 12 , पुष्करवरसमुद्र | 492 ,, | 492 ,, सूचना-आगेके असंख्यातद्वीप-समुद्रोंके लिए संग्रहणी ग्रन्थमें दिया करण-उपाय देख लेना। . मनुष्यक्षेत्रमें चन्द्र-सूर्य पंक्तिका स्वरूप अवतरण-सर्व द्वीप-समुद्रोंमें चन्द्रादित्य संख्या जाननेका करण आगेकी गाथामें बताकर अब ये चन्द्र-सूर्य मनुष्यक्षेत्रमें किस तरह रहे हैं यह बताते हैं _दो दो ससि-रविपंति, एगंतरिया छसहि संखाया। मेरु पयाहिणता, माणुसखित्ते परिभमंति // 8 // गाथार्थ-छियासठ छियासठ चन्द्रकी संख्यावाली और छियासठ छियासठ सूर्यकी संख्यावाली दोनों पंक्तियाँ मनुष्यक्षेत्रमें मेरुको प्रदक्षिणा देती हुई सदाकाल परिभ्रमण करती है। // 8 // विशेषार्थ-इस मनुष्यक्षेत्रमें समश्रेणिगत 132 चन्द्र और 132 सूर्योकी संख्या प्रथम बताई है / अब वह किस तरह व्यवस्थित है ? यह बताया जाता है / जम्बूद्वीपके मध्यभागमें रहे मेरुकी दक्षिणोत्तर दिशामें रही हुई दोनों समश्रेणिके सूर्य 132 गिननेके है और. उसी मेरुपर्वतके पूर्व-पश्चिम समश्रेणिके होकर 132 चन्द्र लेनेके हैं / उनमें मेरुकी दक्षिणदिशामें एक सूर्यपंक्ति और उत्तरदिशाकी एक सूर्यपंक्ति कुल दो सूर्यपंक्तियाँ और मेरुकी पश्चिममें एक चन्द्रपंक्ति और एक पूर्वकी चन्द्रपंक्ति, इस तरह दो चन्द्र पंक्तियाँ होती हैं / इन चन्द्र-सूर्यकी प्रत्येक पंक्तिके दोनों बाजू पर विभाग होनेका कारण बिचमें आया मेरु पर्वत है / १८५प्रत्येक पंक्ति में छियासठ चन्द्र और छियासठ सूर्य होते हैं / वे इस तरह जब जम्बूद्वीपका एक सूर्य मेरुके दक्षिण भागमें हो तब इसी सूर्यकी समश्रेणि पर दक्षिण१८५ तुलना करें- 'चत्तारि य पंतीओ चन्दाइच्चाण मणुयलोमम्मि / छावट्ठी छावट्ठी, होइ इक्किक्किआ पंती // 1 //