________________ 190 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 83-85 / यहाँ शंका होती है कि मनुष्यक्षेत्रके बाहरके द्वीप-समुद्रोंमें इतने सारे चन्द्र-सूर्य हैं, तो वहाँ वर्तित जन्तु आदि, चन्द्र-सूर्यकी शीतलता और उष्णता किस तरह सहन कर संकते होंगे? इसके समाधानमें बताया है कि-मनुष्यक्षेत्रके बाहरके चन्द्र-सूर्य स्वभावसे ही 36-36 सूर्योकी दो और 36-36 चन्द्रोंकी दो पंक्तियाँ भी घट नहीं सकतीं; क्योंकि वैसा करनेसे आठ लाख योजन प्रमाणक्षेत्रमें-३६ सूर्यो अथवा 36 चन्द्रोंको सूचीश्रेणीमें लगानेसे चन्द्रसे चन्द्रका, सूर्यसे सूर्यका तथा चन्द्रसे सूर्यका शास्त्रमें बताया गया इष्ट अन्तर प्राप्त नहीं होता तथा सूर्यान्तरित चन्द्र और चद्रान्तरित सूर्य होने चाहिए लेकिन वे भी नहीं मिल सकते / अब दूसरे प्रकारसे सूचीश्रेणीकी व्यवस्था सम्बन्धमें सोचें यद्यपि इस तरह व्यवस्था करनेसे अमुक विरोध तो खड़ा रहेगा ही; फिर भी प्रारम्भके दोनों पक्षोंमें जितने विरोध देखे जाते हैं, उनकी अपेक्षा तो इस व्यवस्थापक्षमें एकाध विरोधका ही हल अवशिष्ट रहता होनेसे, यह पक्ष किंचित् ठीक समझा जा सकता है, तो भी जब तक सिद्धान्तमेंसे कोई वैसा यथार्थं निर्णय हस्तगत न हो तब तक ऐसे विवादास्पद स्थलोंमें भवभीरु छद्मस्थ कोई भी निर्णय कैसे दे सकते हैं ? आठ लाख योजन प्रमाण बाह्य पुष्करार्धमें प्रारम्भके और अन्तके पचास पचास हजार योजन वर्जित करके अवशिष्ट सात लाख योजन प्रमाण क्षेत्रमें सूर्यकी किरणोंकी तरह चारों दिशावर्ती सात लाख योजन लम्बी चन्द्र-सूर्यकी नव-नव श्रेणियोंकी कल्पना करें, प्रत्येक श्रेणिमें आठ चन्द्रों अथवा आठ सूर्योको लाख लाख योजनके अन्तर पर स्थापित करें, ऐसा करनेसे 72 चन्द्रों और 72 सूर्योकी संख्या प्राप्त होगी, चन्द्रसे चन्द्रका तथा सूर्यसे सूर्यका एक लाख योजन प्रमाण अन्तर कम होगा और एक अपेक्षासे 'सूर्यान्तरित चन्द्र और चन्द्रांतरित सूर्य होते हैं ' यह वचन भी सफल होगा / सिर्फ 'चन्दाओ सूरस्स य सूरा चन्दस्स अन्तरं होइ / पन्नाससहस्साई जोयणाई अणूणा // 1 // ' इस गाथाके अर्थानुसार चन्द्रसे सूर्यका अथवा सूर्यसे चन्द्रका जो पचास हजार योजन प्रमाण अन्तर जणाया है उस अन्तरको संगत कैसे करे ? यही एक प्रश्न उपस्थित होगा, (क्योंकि प्रत्येक पंक्ति चन्द्र-सूर्यसे समुदित होनेसे ) और यह प्रश्न जब तक हो तब तक इस सूचीश्रेणीकी व्यवस्थाको भी आदर नहीं दिया जा सकता / __ अथवा प्रारम्भके और अन्तके पचास पचास हजार योजन कम करके अवशिष्ट सात लाख योजन प्रमाण क्षेत्रमें चन्द्रकी और सूर्यकी ऊपरके चित्रकी तरह अलग अलग पंक्तियाँ न रचकर चन्द्र-सूर्यकी समुदित पंक्ति रक्खें, अर्थात् बाह्य पुष्कराधमें कुल नव पंक्तियोंकी कल्पना करें, उन नव पंक्तियों से प्रत्येक पंक्तिमें एक चन्द्र एक सूर्य, एक चन्द्र एक सूर्य ऐसे पचास-पचास हजार योजनके अन्तर पर कम करते सात लाख योजन तक जानेमें आठ चन्द्र और सात सूर्यका सात लाख योजन लम्बी एक पंक्तिमें समावेश होता है / प्रथम चन्द्र रक्खा गया है अगर उसके बदलेमें प्रथम सूर्य रक्खा जाए तो आठ सूर्य और सात चन्द्रका एक पंक्तिमें समावेश होता है / इस तरह करनेसे नवों पंक्तियोंमें प्रथम चन्द्रकी स्थापनापेक्षया चन्द्रकी 72