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लोगस्स प्रर्थसहित.
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विजयराजा पिता, विप्रा राणी माता, पन्नर धनुष्य प्रमाण शरीर, दश हजार वर्षायु, सुवर्णवर्ण देह, नीलोत्पलनं लांबन.
१२ बावीशमा श्रीश्ररिष्टनेमि प्रजुने हुंबाडु बुं. रिष्ट एटले पाप तेना ना शने विषे चक्रधारी सरखा हता माटें अरिष्टनेमि, तथा प्रभु गर्ने श्राव्या पी प्रजुनी मातायें स्वप्नमा रिष्टरलनी रेल दीठी. वली आकाशने विषे रि ट रत्नमय नेमि एटले चक्रधारा उबलती स्वप्नामां दीठी, माटें रि ष्टनेमि नाम दीधुं, बीजुं नाम श्रीनेमिनाथ. एमनुं सौरीपुरी नगर, समुद्र विजय राजा पिता, शिवादेवी राणी माता, दश धनुष्य प्रमाण शरीर, एक हजार वर्षायु, श्यामवर्ण देह, शंखनुं लांबन.
२३ त्रेव शमा श्री पार्श्वनाथने हुं बांडु बुं. जे समस्त जावोने स्पृशति एटले जाणे माटें पार्श्वनाथ तथा एमनो वैयावृत्त्यकर जे पार्श्वनामा यह तेना नाथ माटें पार्श्वनाथ अथवा प्रभु गर्ने श्राव्या पी अंधारी रात्रें पोतानी पासें सर्प जतो ( पास के०) दीवो, ते सर्पना जवाना मार्गनी वचमां राजानो हाथ देखी राणी यें उंचो कीधो, तेथी राजा जागी उठ्यो ने बोल्यो के शा माटे हाथ उंचो की धो? राणी यें कयुं के में सर्प जतो दीठो माटे तमारो हाथ उंचो की धो. राजा बोल्यो, तमें जूनुं बोलो बो. पठी सेवकने तेमी दीपक मंगावीने जोयुं, तो सर्प दीठो, तेवारें विस्मय पामी राजायें विचाखुं जे में नदीतुं ने राणी यें दीव्रं, ए निश्चें गर्जनो प्रजाव बे, एम जाणी श्रीपार्श्व ना नाम दधुं . एम वाराणसी नगरी, अश्वसेन राजा पिता, वामा राणी माता, नव हाथनुं शरीर, एकशो वर्षायु, नीलवर्ण देह, सर्पनुं लांबन
२४ चोवी शमा श्रीवर्द्धमानस्वामीने हुं बांडुं हुं जन्मथकी मांगीने ज्ञानादिर्के वृद्धि पाम्या तेथी वर्द्धमान तथा प्रमु गर्ने आव्या पबी मातापिता धन धान्यादिकना जंगार तथा देश, नगर, द्विपद, चतुष्पद, इत्यादि सर्व प्रकारनी शद्धियें करी वृद्धि पाम्यां तथा सर्व राजा पण यज्ञामां वर्त्तवा लाग्या. एवो गर्जनो प्रजाव जाणी वर्द्धमान नाम दीधुं तथा जगवंतें जन्मतांज मेरु पर्वत माबा पगने अंगुठे कंपाव्यो, वली देवता साथै आमल क्रीम करतां जगवंत यगल देवता द्वारयो, नाशी ने इंद्र पासें गयो, जगवंत जींत्या. एम जगवंतनुं अनंत बल जाणीने श्रीमहावीर एवं बीजुं नाम इंद्र
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