Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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प्रतिक्रमण सूत्र. जिनवर बारमो ए, नावि चोवीशियें लछ॥जयो ॥६॥ कलश श्य नेमि जिनवर, नित्य पुरंदर, रेवताचल, मंगणो ॥ बाण नंद मुनि, चंद वरसें,११५ राजनगरें,संथुण्यो॥संवेगरंग, तरंग जलनिधि, सत्य विजय, गुरु, अनुसरी॥ कपूर विजय कवि, दमाविजय गणि, जिन विजय, जयसिरि वरी॥१॥ ति॥
॥अथ श्रीवीरप्रजुनुं दीवालीनुं स्तवन लिख्यते ॥ ॥ मारगदेशक मोदनो रे, केवल ज्ञान निधान ॥ नावदया सागर प्रनु रे, पर नपगारी प्रधानो रे ॥१॥ वीर प्रनु सिफ थया ॥ संघ सकल आधारो रे, हवे श्ण नरतमां ॥ कोण करशे उपगारो रे ॥ वीर ॥२॥ नाथ विहणुं सैन्य ज्युं रे, वीर विहणा रे जीव ॥ साधे कोण आधारथी रे, परमानंद अनंगो रे ॥ वीर ॥३॥ मात विद्रणो बाल ज्युं रे, अरहो परहो अथमाय ॥ वीर विहूणा जीवमारे, आकुल व्याकुल थाय रे ॥ वीरण ॥४॥ संशय बेदक वीरनो रे, विरद ते केम खमाय ॥ जे दी सुख उपजे रे, ते विण केम रहेवायो रे ॥ वीर ॥ ५॥ निर्यामक नव समुन नो रे, नवअमवी सबवाह ॥ ते परमेश्वर विण मले रे, केम वाधे उत्सा हो रे॥ वीर ॥ ६॥ वीरथकां पण श्रुत तणो रे, हतो परम आधार ॥ हवे इहां श्रुत आधार बे रे, अहो जीनमुडा सारो रे॥ वीर०॥ ७॥त्र ण कालें सवि जीवने रे, आगमथी आणंद ॥ सेवो ध्यावो नवि जना रे, जीनपमिमा सुखकंदो रे॥ वीरा॥ गणधर आचारज मुनि रे,सहूने एणी परें सिफि॥ जव नव आगम संगथी रे, देवचंद पद लीध रे वीर ॥ ए॥
॥ अथ आंबील तप आश्रयी श्रीसिझचक्रजीतुं स्तवन ॥
___॥जीहो कुंअर बेग गोंखडे ॥ ए देशी ॥ ॥ जीहो प्रणमुं दिन प्रत्ये जिनपति लाला॥ शिव सुखकारी अशेष॥ जीहो आशोई चैत्री नणी ॥ लाला ॥ अहाई विशेष ॥ १॥ नवि कजन, जिनवर जग जयकार ॥ जीहो जिहां नवपद आधार ॥ ज० ॥ ए
आंकणी ॥ जीहो तेह दिवस आराधवा ॥ लाला ॥नंदीश्वर जाय ॥ जीहो जीवा निगममांहे कडं ॥ ला ॥ करे अम दिन महिमाय ॥२॥ ज० ॥ जीहो नवपद केरा यंत्रनी ॥ ला ॥ पूजा किजें रे जाप ॥ जीहो रोग शोक सवि आपदा ॥ ला ॥ नासे पापनो व्याप ॥३॥ न ॥ जीहो अरिहंत सिक आचारज ॥ ला ॥ उवकाय साधु ए पंच ॥ जीहो दंसण नाण
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